भूपेन हाज़ारिका का चले जाना एक युग का अंत है। एक तरह से हबीब तनवीर के गुजरने के बाद से जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह गुरशरण सिंह और भूपेन हाज़ारिका के साथ युगांत पर आ गया है। यह हमारी पीढी, खासकर कोलकाता जैसे शहरों में साठ के दशक के आखिरी और सत्तर के दशक के शुरुआती सालों में कैशोर्य बिताने वाली पीढी के लोगों के लिए भी जैसे सूचना है कि हम अब बूढ़े हो चले हैं। भूपेन हाज़ारिका हमारे उन प्रारंभिक युवा दिनों की दूसरी सभी बातों के साथ हमारी ज़िन्दगियों के साथ अभिन्न रूप से जुड़े थे। हमलोग रुना गुहठाकुरता का गाया ओ गंगा तुमी सुनते और कहते अरे भूपेन हाज़ारिका जैसी बात कहाँ। यह हमलोगों का आग्रह था जैसे कोई और उनकी तरह गा ही नहीं सकता। हमलोग सीना चौड़ा कर कहते कि पाल रोब्सन के 'ओल्ड मैन मिसिसीपी' को 'ओ गंगा तुमी' गाया है। जैसे वह हमारे परिवार के कोई थे जिनको ऐसी ख़ास बातों के लिए सम्मान मिला हो। रवींद्र, सलिल चौधरी आदि के बाद बांग्ला संगीत में (हालांकि मूलतः वे अहोमिया थे) वे आखिरी इंकलाबी थे। उनके बाद सुमन हैं, पर बिलकुल अलग तरह के - सुमन हमसे उम्र में बड़े हैं, पर संगीत में जैसे वह हमारे बाद की पीढ़ी के हैं।
नेल्सन मंडेला को जो स्वागत कोलकाता में मिला था, वह शायद ही कहीं और मिला हो, और उस दिन ईडेन स्टेडियम में मुख्य गायक भूपेन हाज़ारिका थे। मैं चंडीगढ़ में टी वी पर देख रहा था और गर्व से फूला जा रहा था जैसे मैं ही उस स्वागत का मुख्य मेजबान हूं। उसी भूपेन हाज़ारिका ने बी जे पी की ओर से चुनाव लड़ा तो मैंने भू भू हा हा शीर्षक कविता लिखी। तब से मैं उनसे नाराज़ रहता था। उनके गानों को सुनता तो जैसे मन मसोस कर। चुनाव हारने पर बहुत खुशी हुई थी।
आज दो दिनों से इस बात को मानने की कोशिश में हूं कि भूपेन हाज़ारिका अब नहीं है। उनका गाया कुछ भी मुझे अच्छा लगता था, पर शायद सबसे खूबसूरत मुझे यह गाना लगता है (एक हिन्दी रूपांतर यहाँ है) :
মোর গাঁয়ের সীমানার পাহাড়ের ওপারে मोर गाँयेर सीमानार पाहाड़ेर ओपारे
নিশীথ রাত্রির প্রতিধ্বনি শুনি निशीथ रात्रिर प्रतिध्वनि सुनी
কান পেতে শুনি আমি বুঝিতে না পারি कान पेते सुनी आमी बुझिते ना पारी
চোখ মেলে দেখি আমি দেখিতে না পারি चोख मेले देखि आमी सुनीते ना पारी
চোখ বুজে ভাবি আমি ধরিতে না পারি चोख बुझे भाबी आमी धरीते ना पारी
হাজার পাহাড় আমি ডিঙুতে না পারি हाजार पाहाड़ आमी डिंगोते न पारी
হতে পারে কোন যুবতীর শোক ভরা কথা होते पारे कोनो युवतीर शोक भरा कथा
হতে পারে কোন ঠাকুমার রাতের রূপকথা होते पारे कोनो ठाकुमार रातेर रूपकथा
হতে পারে কোন কৃষকের বুক ভরা ব্যাথা होते पारे कोनो कृषकेर बुक भरा व्यथा
চেনা চেনা সুরটিকে কিছুতে না চিনি चेना चेना सुर टि के किछुते ना चीनी
নিশীথ রাত্রির প্রতিধ্বনি শুনি
শেষ হল কোন যুবতীর শোক ভরা কথা
শেষ হল কোন ঠাকুমার রাতের রূপকথা
শেষ হল কোন কৃষকের বুক ভরা ব্যাথা
চেনা চেনা সুরটিকে কিছুতে না চিনি
নিশীথ রাত্রির প্রতিধ্বনি শুনি
মোর কাল চুলে সকালের সোনালী রোদ পড়ে
চোখের পাতায় লেগে থাকা কুয়াশা যায় সরে
জেগে ওঠা মানুষের হাজার চিৎকারে
আকাশ ছোঁয়া অনেক বাঁধার পাহাড় ভেঙে পড়ে
মানব সাগরের কোলাহল শুনি
নতুন দিনের যেন পদধ্বনি শুনি
आखिरी लाइनें हैं - मानव सागारेर कोलाहल सुनी, नोतून दिनेर जेनो पदध्वनि सुनी.
मानव सागर का कोलाहल सुनता हूं, नए दिनों कि पदध्वनि सुनता हूं। यह हमारी पीढी की आवाज़ है जो हमें पिछली पीढियों से विरासत में मिली है। ग़जब यह कि सारे संकेत विपरीत से लगते हुए भी हमारी यह आवाज़ मंद नहीं पड़ी है. ...इसलिए भूपेन हाज़ारिका को सलाम।
नेल्सन मंडेला को जो स्वागत कोलकाता में मिला था, वह शायद ही कहीं और मिला हो, और उस दिन ईडेन स्टेडियम में मुख्य गायक भूपेन हाज़ारिका थे। मैं चंडीगढ़ में टी वी पर देख रहा था और गर्व से फूला जा रहा था जैसे मैं ही उस स्वागत का मुख्य मेजबान हूं। उसी भूपेन हाज़ारिका ने बी जे पी की ओर से चुनाव लड़ा तो मैंने भू भू हा हा शीर्षक कविता लिखी। तब से मैं उनसे नाराज़ रहता था। उनके गानों को सुनता तो जैसे मन मसोस कर। चुनाव हारने पर बहुत खुशी हुई थी।
आज दो दिनों से इस बात को मानने की कोशिश में हूं कि भूपेन हाज़ारिका अब नहीं है। उनका गाया कुछ भी मुझे अच्छा लगता था, पर शायद सबसे खूबसूरत मुझे यह गाना लगता है (एक हिन्दी रूपांतर यहाँ है) :
মোর গাঁয়ের সীমানার পাহাড়ের ওপারে मोर गाँयेर सीमानार पाहाड़ेर ओपारे
নিশীথ রাত্রির প্রতিধ্বনি শুনি निशीथ रात्रिर प्रतिध्वनि सुनी
কান পেতে শুনি আমি বুঝিতে না পারি कान पेते सुनी आमी बुझिते ना पारी
চোখ মেলে দেখি আমি দেখিতে না পারি चोख मेले देखि आमी सुनीते ना पारी
চোখ বুজে ভাবি আমি ধরিতে না পারি चोख बुझे भाबी आमी धरीते ना पारी
হাজার পাহাড় আমি ডিঙুতে না পারি हाजार पाहाड़ आमी डिंगोते न पारी
হতে পারে কোন যুবতীর শোক ভরা কথা होते पारे कोनो युवतीर शोक भरा कथा
হতে পারে কোন ঠাকুমার রাতের রূপকথা होते पारे कोनो ठाकुमार रातेर रूपकथा
হতে পারে কোন কৃষকের বুক ভরা ব্যাথা होते पारे कोनो कृषकेर बुक भरा व्यथा
চেনা চেনা সুরটিকে কিছুতে না চিনি चेना चेना सुर टि के किछुते ना चीनी
নিশীথ রাত্রির প্রতিধ্বনি শুনি
শেষ হল কোন যুবতীর শোক ভরা কথা
শেষ হল কোন ঠাকুমার রাতের রূপকথা
শেষ হল কোন কৃষকের বুক ভরা ব্যাথা
চেনা চেনা সুরটিকে কিছুতে না চিনি
নিশীথ রাত্রির প্রতিধ্বনি শুনি
মোর কাল চুলে সকালের সোনালী রোদ পড়ে
চোখের পাতায় লেগে থাকা কুয়াশা যায় সরে
জেগে ওঠা মানুষের হাজার চিৎকারে
আকাশ ছোঁয়া অনেক বাঁধার পাহাড় ভেঙে পড়ে
মানব সাগরের কোলাহল শুনি
নতুন দিনের যেন পদধ্বনি শুনি
आखिरी लाइनें हैं - मानव सागारेर कोलाहल सुनी, नोतून दिनेर जेनो पदध्वनि सुनी.
मानव सागर का कोलाहल सुनता हूं, नए दिनों कि पदध्वनि सुनता हूं। यह हमारी पीढी की आवाज़ है जो हमें पिछली पीढियों से विरासत में मिली है। ग़जब यह कि सारे संकेत विपरीत से लगते हुए भी हमारी यह आवाज़ मंद नहीं पड़ी है. ...इसलिए भूपेन हाज़ारिका को सलाम।
No comments:
Post a Comment