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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Monday, February 14, 2011

विजय का सेहरा एक

मिस्र में ताज़ा इंक़लाब की ख़बरों का हमारे यहाँ अच्छा स्वागत हुआ है। मिस्र के साथ एक ज़माने में भारत के संबंध गहरे थे। नासिर, नेहरु और टीटो की गुट निरपेक्ष की तिकड़ी का वह ज़माना ऐसा था जब भारत एक कमजोर देश होते हुए भी विश्व राजनीति में अच्छी हैसियत रखता था। उस ज़माने में राष्ट्रवाद में स्वाधीनता संग्राम और मानव- मुक्ति की पहचान थी। वह आज के वक़्त का घिनौना राष्ट्रवाद न था। इसलिए आज जब मिस्र के बहाने कुछ लोग हमारे यहाँ राष्ट्रवाद को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं, तो हम मुक्तिबोध की पंक्तियाँ दोहराते हैं।

दुनिया के हिस्सों में चारों ओर
जन-जन का युध्द एक
मस्तक की महिमा
व अन्तर की ऊष्‍मा
से उठती है ज्वाला अतिक्रुध्द एक।
संग्राम घो एक
जीवन-संताप एक।
क्रांति का, निर्माण का, विजय का सेहरा एक
चाहे जिस दे , प्रांत, पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक।

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5 Comments:

Blogger Dinesh said...

जिस तरह मिस्र में लोग इकठ्ठे हुए हैं, उसी तरह चीन के थ्यानमन चौक पर आजादी के मतवाले इकठ्ठा हुए थे. लेकिन तत्कालीन कम्युनिष्ट सरकार ने उन निर्दोषों के खून की नदियाँ बहा दीं.
अर्थात घिनौनी कम्युनिष्ट शासन की अपेक्षा एक तानाशाह से लड़ना अधिक आसान होता है.

चीनी सर्च इंजन में तो egypt शब्द खोजने पर परिणाम दिखाना बंद कर दिया. चीनी कम्युनिष्ट शुतुरमुर्ग अपना सिर्फ जमीन में घुसेड़कर सोचते है कि को कुछ नहीं दिख रहा है.

12:40 PM, February 14, 2011  
Blogger सुमो said...

गए ज़माने के गुजरे लोग पुरानी बातों को याद करके आह भरा करते है.

बेईमानी की शुरुआत नेहरु के ज़माने से ही हो चुकी थी. आज़ाद भारत का सबसे पहला घोटाले बाज कृष्णमेनन था जिसने जीप का घोटाला किया था और नेहरू ने अपनी आखें बंद लकर इस घोटालेबाज को रक्षामंत्री बना दिया था.

दिलीप मंडल ने आज फेसबुक में लिखा है की "सरकार न मनाए और टेक्स्ट बुक में जबरन न पढ़ाया जाए, तो कई महापुरुष टाइप लोग इतिहास में खो जाएंगे"

वैसे भी कम्युनिष्टो के महापुरुषों के बुत तो उनके देश के आने वाले लोग गिरा देते हैं.

5:05 PM, February 14, 2011  
Blogger Unknown said...

राष्ट्रवाद तो घिनौना नहीं विदेशी ताकतों के इशारों पर चल रहा कम्युनिज्म जरूर है. लेकिन यह देश हर घिनौनी विचारधारा से निपटना जानता है.

तभी तो हत्यारों का समर्थक विनायक सेन जेल में है

7:38 PM, February 14, 2011  
Blogger iqbal abhimanyu said...

तथाकथित राष्ट्रवादियों को मुंहतोड़ जवाब देना जरूरी है, इनकी घृणित परम्परा देश की पीठ में खंजर घोंपने की रही है. अंग्रेजों से माफी मांगने वाला सावरकर और हिटलर को आदर्श मानने वाला गोलवलकर इनके आदर्श हैं. ये निक्कर पहन कर डंडा घुमाते है और भारतीयता की बात करते हैं, इनके प्रधानमंत्री अटल ने भारत को अमरीका के हाथों बेच खाया, हमें हथियारों की अंधी दौड़ में शामिल किया, हमारे बाज़ार पर विदेशी कंपनियों का कब्जा करवाया, शर्म नहीं आती देश की बात करते हुए? हमारी संस्कृति कबीर और जायसी, रैदास और गांधी की संस्कृति है, उसमे धर्मान्धता के लिए कोई जगह नहीं है. इन्हें राष्ट्रवादी कहना राष्ट्र को गाली देना है, मैं कम्युनिस्ट नहीं, क्योंकि कम्युनिस्टों का आदर्श भी यूरोप-आधारित और केंद्रीकृत है, लेकिन मानव-मानव में द्वेष पैदा करने वाले, हिंसा और दमन को बढ़ावा देने वाले संघियों पर मैं थूकता हूँ, इन्ही लोगों के कारण भारत शर्मसार है, गुजरात में, मध्यप्रदेश में, उड़ीसा में, बार-बार इन्होने इंसानियत को शर्मसार किया है.. राष्ट्रवाद इनकी बपौती कभी न थी और न होगी. देश का आम आदमी भी इनकी असलियत को पहचानता है,
आपको भी मिस्र की जीत मुबारक हो, उम्मीद है वहाँ ऐसी सरकार आयेगी जो लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी और अमरीका और इजराइल की पिछलग्गू नहीं होगी..

4:44 PM, February 15, 2011  
Blogger प्रदीप कांत said...

मिस्र के आवाम को तानाशाही पर जीत मुबारक|
ये बात और है कि इस जीत के बाद की सरकार कितनी बेदाग और लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरती है|

12:32 AM, February 25, 2011  

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