मिस्र में ताज़ा इंक़लाब की ख़बरों का हमारे यहाँ अच्छा स्वागत हुआ है। मिस्र के साथ एक ज़माने में भारत के संबंध गहरे थे। नासिर, नेहरु और टीटो की गुट निरपेक्ष की तिकड़ी का वह ज़माना ऐसा था जब भारत एक कमजोर देश होते हुए भी विश्व राजनीति में अच्छी हैसियत रखता था। उस ज़माने में राष्ट्रवाद में स्वाधीनता संग्राम और मानव- मुक्ति की पहचान थी। वह आज के वक़्त का घिनौना राष्ट्रवाद न था। इसलिए आज जब मिस्र के बहाने कुछ लोग हमारे यहाँ राष्ट्रवाद को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं, तो हम मुक्तिबोध की पंक्तियाँ दोहराते हैं।
दुनिया के हिस्सों में चारों ओर
जन-जन का युध्द एक
मस्तक की महिमा
व अन्तर की ऊष्मा
से उठती है ज्वाला अतिक्रुध्द एक।
संग्राम घोष एक
जीवन-संताप एक।
क्रांति का, निर्माण का, विजय का सेहरा एक
चाहे जिस देश , प्रांत, पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक।
Comments
अर्थात घिनौनी कम्युनिष्ट शासन की अपेक्षा एक तानाशाह से लड़ना अधिक आसान होता है.
चीनी सर्च इंजन में तो egypt शब्द खोजने पर परिणाम दिखाना बंद कर दिया. चीनी कम्युनिष्ट शुतुरमुर्ग अपना सिर्फ जमीन में घुसेड़कर सोचते है कि को कुछ नहीं दिख रहा है.
बेईमानी की शुरुआत नेहरु के ज़माने से ही हो चुकी थी. आज़ाद भारत का सबसे पहला घोटाले बाज कृष्णमेनन था जिसने जीप का घोटाला किया था और नेहरू ने अपनी आखें बंद लकर इस घोटालेबाज को रक्षामंत्री बना दिया था.
दिलीप मंडल ने आज फेसबुक में लिखा है की "सरकार न मनाए और टेक्स्ट बुक में जबरन न पढ़ाया जाए, तो कई महापुरुष टाइप लोग इतिहास में खो जाएंगे"
वैसे भी कम्युनिष्टो के महापुरुषों के बुत तो उनके देश के आने वाले लोग गिरा देते हैं.
तभी तो हत्यारों का समर्थक विनायक सेन जेल में है
आपको भी मिस्र की जीत मुबारक हो, उम्मीद है वहाँ ऐसी सरकार आयेगी जो लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी और अमरीका और इजराइल की पिछलग्गू नहीं होगी..
ये बात और है कि इस जीत के बाद की सरकार कितनी बेदाग और लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरती है|