Friday, December 15, 2006

अश्लील

उच्चतम न्यायालय ने राय दी है कि नग्नता अपने आप में अश्लील नहीं है।

यह एक महत्त्वपूर्ण राय है, खासकर हमारे जैसे मुल्क में जहाँ अश्लील कहकर कला और व्यक्ति स्वातंत्र्य का गला घोंटने वाले दर दर मिलते हैं और जो सचमुच अश्लील है उसे सरेआम बढ़ावा मिलता है।

इस प्रसंग में यह कविता याद आ गई।



अश्लील


एक आदमी होने का मतलब क्या है
एक चींटी या कुत्ता होने का मतलब क्या है
एक भिखारी कुत्तों को रोटी फेंककर हँसता है
मैथुन की दौड़ छोड़ कुत्ते रोटी के लिए
दाँत निकालते हैं

एक अखबार है जिसमें लिखा है
एक वेश्या का बलात्कार हुआ है
एक शब्द है बलात्कार जो बहुत अश्लील है
बर्बर या असभ्य आचरण जैसे शब्दों में
वह सच नहीं
जो बलात्कार शब्द में है

एक अंग्रेज़ी में लिखने वाला आदमी है
तर्कशील अंग्रेज़ी में लिखता है
कि वेश्यावृत्ति एक ज़रुरी चीज है

उस आदमी के लिखते ही
अंग्रेज़ी सबसे अधिक अश्लील भाषा बन जाती है

(पश्यंतीः - अक्तूबर-दिसंबर २०००)

इस कविता के बारे में लिखते हुए याद आया कि इसका पहला ड्राफ्ट कोई दस साल पहले संघीय लोक सेवा आयोग के गेस्ट हाउस में बैठकर लिखा था। प्रशासन के साथ जब जब भी जुड़ा हूँ, कहीं कुछ अश्लील कर रहा हूँ, ऐसा क्यों लगता है! खासकर दिल्ली के आसपास। बहरहाल...........

4 comments:

Anonymous said...

उच्चतम न्यायालय ने एकदम सही टिप्पणी की है . नग्नता अश्लीलता का पर्याय नहीं है . बिना नग्नता के भी अश्लीलताओं का विराट और अमानवीय प्रदर्शन हो सकता है . कलाओं में प्रदर्शित नग्नता सुरुचिपूर्ण और अभिव्यंजक भी हो सकती है . कई बार अश्लीलता दृष्य में न हो कर देखने वाले की नज़र में भी होती है .

Anonymous said...

गुजरात के सुप्रसिद्ध साहित्यकार भगवती कुमार शर्मा ने अपनी अमरीका यात्रा के संसमरं " अमरीका आवजे" में लिखा है कि एक बार उनका किसी समुद्र तट पर जाना हुआ, वहाँ ढ़ेरों जोड़े वि वस्त्र धूप स्नान कर रहे थे, इस बार पर श्री शर्मा ने लिखा है कि मुझे वहाँ नग्नता दिखी पर अश्लीलता नहीं। ( त्यां नग्नता हती पण क्यायं अश्लीलता नही हती )

अनूप शुक्ल said...

आपकी कविता बहुत अच्छी लगी!

मसिजीवी said...

अच्‍छी कविता। शायद पहले भी पढ़ी थी।

माना दिल्‍ली शहर ना हो स्‍वयं में प्रतीक हो गई है पर वेश्‍या ही सही उसका ऐसा इस-उस हर पोस्टिंग में बलात्‍कार भी उचित नहीं।