मुल्क
की माली हालत सुधारने का
फॉर्मूला
मलंगों
को बाँध रखने की नई तकनीक आ गई
है। केंद्र खोले गए हैं जहाँ
चौबीस घंटे जिस्म के पोर दिखाए
जाएँगे,
जिनकी
खोज हाल में हुई है। मलंग इनको
देखकर नाचते हैं और कभी नहीं
रुकते। नाचते हुए वे टट्टी-पानी
करते हैं,
चाय
नाश्ता करते हैं और हुक्काम
की जै-जैकार
करते हैं। बेशक यह मलंगों की
ज़िंदगी में बड़ा बदलाव है।
वे दौड़ते आते हैं और अंदर जाने
की माँग करते हैं। कुछ पोस्टर
लिए खड़े होते हैं,
जिनपर
लिखा है -
हाइल
हिटलर,
हाइल
हमारा नेता,
जै
गोमाता। केंद्र से बाहर खड़े
होकर काँच की दीवारों से वे
अंदर के मंज़र देखते हैं।
तरह-तरह
के जिस्मानी पोर देखते झूमते
हैं। खुद पर चाबुक बरसाते हैं।
रति-अतिरेक
जैसी चीखें गूँजती हैं। उनको
सँभालने आए सिपाही
उनके उल्लास में शामिल हो जाते
हैं। नाचते हुए ताप के एहसास
से वे वर्दियाँ खोल डालते हैं।
कुछ जाँघिए पहने नाचते हैं।
यह
तकनीक मुल्क की माली हालत
सुधारने का फॉर्मूला है।
हुक्मरान अपने-अपने
इदारों में हर कारिंदे को
मलंग-नाच
में शामिल होने के लिए कहते
हैं। लोग सुबह लंबी कतारों
में खड़े होते हैं और शाम को
नाच रहे होते हैं। कौन कितनी
देर किन पोरों को देखता-सूँघता
नाचेगा,
इस
पर बहस होती है। सिपाही अलग-अलग
नाचते गुटों में शामिल होकर
कहते हैं कि वे न्याय-शृंखला
के काम में लगे हैं।
एक
वक्त था,
जब
मलंग अदब की राह ढूँढने निकले
थे। वे एक दूसरे को पुराने
अदीब की कहानियाँ सुनाते रहे,
जिसने
कहा था कि 'चाँद
का मुँह टेढ़ा है'।
एक-एक
कर सभी नाच में शामिल होने
लगे। अब उन पर माता चढ़ आई है।
धूप-धूनी
में नीमबेहोशी में खोए वे
कविताएँ पढ़ते हैं और परंपरा
का जयगान गाते हैं। नेता की
तोंद उनको देखकर खिलखिलाती
है। हुक्म जारी होता है कि नए
जिस्मानी पोरों को सूँघने
वाले सब का नाम बदल कर देशभक्त
हो गया है।
(नया पथ - 2020)
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