Sunday, October 05, 2014

मैंने उसे है चाहा


जब कोई पक्षी न बचेगा


जब कोई पक्षी न बचेगा

किसमें पूर्वजों को ढूँढूँगा 
 
न दिखेगी कोई चिड़िया 
 
तो किसे बहन कहकर पुकारूँगा

किससे करूँगा प्यार और किससे नाराज़ होऊँगा।


उसे चाहा

जैसे चाहता हूँ स्वास में शुद्ध हवा 
 
उस के लिए विशेषण क्रिया-विशेषण नहीं ढूँढूँगा।

वैसे कौन सा विशेषण सही होगा 
 
जाफना की स्त्री के लिए जिससे मैंने प्रेम किया 
 
ईराकी फिलस्तीनी स्त्रियों के बारे में भी कहता हूँ 
 
कि उनको चाहा

जैसे चाहता हूँ बादल में पानी या दरख्त की छाया


सुनता हूँ अचिन पाखी की कूक में 
 
कि कौन महाद्वीपों को लाँघकर कहने आएगा

कि प्यार को चाहिए जीना

चाहिए कुछ न कुछ गाते रहना। 
 

जवान उसे चाहा 
 
वयस्क उसे चाहा 
 
सड़क पर लहूलुहान 
 
वह मेरे घर लड़ रही

चिड़ियों की लड़ाई


बावजूद इसके कि हर शहर ने चीर डाला

कि वह विवस्त्र खड़ी हो गई

उससे सीखता हूँ कि पेड़ की छाया जिऊँ

कि उसकी शाखाओं में मेरे पूर्वजों ने घर बनाए हैं


बादलों के बीच में से 
 
उतरता कौन आखिरी पेड़ से बतियाने आएगा 
 
ठूँठ भले ही, कंधों पर कौन बैठेगा मेरे 
 
किससे प्यार करूँगा 
 
किसके लिए गीत गाऊँगा

गोल गोल रानी इत्ता इत्ता पानी किसे सुनाऊँगा।


वह खेत-मजूर 

वह मिट्टी से खेलती 
 
खुरदरी उँगलियाँ 
 
मन-पाखी छूतीं

वह वैज्ञानिक 

शोध करती 
 
वह कविता लिखती

दिखलाती 
 
कि दिनों बाद सही, गौरैया दिखी है। 
 

मुझमें 
 
आखिरी पक्षी की कहानी कहती

मैंने उसे है चाहा।

(पाखी - 2013)


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