Sunday, July 03, 2011

झमाझम मेघा और मेधा की मार


अभी पाँच मिनट पहले से झमाझम बारिश हो रही है। यहाँ मानसून आए एक महीना हो गया। इन दिनों लगातार संस्थान में भर्ती लेने आए प्रार्थियों के लिए अलग अलग स्तर की कई साक्षात्कार समितियों में बैठना पड़ रहा है। चूँकि विज्ञान और मानविकी दोनों में मेरा हस्तक्षेप रहा है, इसलिए मेरी दुर्दशा औरों की तुलना में अधिक है। रविवार को भी छुट्टी नहीं। कल से जिन पैनेल्स में बैठा हूँ, उनका संबंध मानविकी और भाषा विज्ञान से है। हमारे यहाँ कुछ अनोखे प्रोग्राम हैं। पाँच साल में कंप्यूटर साइंस में बी टेक और मानविकी या भाषा विज्ञान या प्राकृतिक विज्ञान जैसे किसी डोमेन (विशेष क्षेत्र) में एम एस, की दो डिग्रियाँ - शुरू से ही डोमेन विषयों में शोधकार्य पर जोर है। खैर, कल उज्जैन से आए एक छात्र से कुछ कोशिश कर कालिदास का नाम निकलवाया, पर कालिदास की किसी कृति का नाम नहीं निकला। रोचक बात यह थी कि महाकाल मंदिर में जाने पर कैसे एक अलौकिक शक्ति की उपस्थिति का आभास होता है, यह जानकारी उसने हमें दी। आज इलाहाबाद से आयी एक बालिका ने बड़ी कोशिश कर याद किया कि उसने स्कूल के पाठ्यक्रम में किसी स्त्री लेखिका की कुत्ते पर लिखी कहानी 'नीलू' पढ़ी थी। वर्मा कहने पर महादेवी उसने जोड़ लिया, पर यह पूछने पर कि वह मुख्यतः कहानी या कविता लिखती थी, उसने कहानी बतलाया। ये बच्चे देश के मेधावी गिने जाने वाले बच्चे हैं। विशाखापत्तनम से आयी एक बच्ची का मानना था कि हुसैन को सरकार ने उसके अपराध की वजह से देश से निकाला था। हैदराबाद में रहने वाले एक मूलतः हिंदी भाषी बड़े ही फर्राटे से अंग्रेज़ी बोलने वाले एक जनाब का कहना था कि हालाँकि उसने ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षाओं में अंग्रेज़ी के अलावा दूसरी भाषा के बतौर संस्कृत पढ़ी है, उसे संस्कृत का एक अक्षर भी नहीं आता, क्योंकि सब कुछ रट्टा मार कर पढ़ा था। बहरहाल मेधा की मार अभी चलती रहेगी, आगे और कई साक्षात्कार होने हैं।
आज अखबार में सर विदिया (वही विद्या नायपाल) की स्त्री लेखिकाओं पर विवादास्पद टिप्पणी पर कुछ आलेख पढ़े। स्त्री लेखिकाओं और कलाकारों को दरकिनार कर हम एक अधूरे संसार में ही जी सकते हैं। इसी प्रसंग में यह कविताः-

उन सभी मीराओं के लिए
तुम्हारे पहले भी छंद रचे होंगे युवतिओं ने
अधेड़ महिलाएँ सफाई करतीं खाना बनातीं
गाती होंगी गीत तुमसे पहले भी
किसने दी तुम्हें यह हिम्मत
कैसी थी वह व्यथा प्रेम की मीरा
कौन थीं तुम्हारी सखियाँ
जिन्होंने दिया तुम्हें यह जहर
कैसा था वह स्वाद जिसने
छीन ली तुमसे हड्डियों की कंपन
और गाने लगी तुम अमूर्त्त प्रेम के गीत
उन सभी मीराओं के लिए जो तुमसे पहले आईं
मैं दर्ज़ करता हूँ व्यथाओं के खाते में अपना नाम
मेरा प्रतिवाद कि मैं हूँ अधूरा अपूर्ण
मुझसे छीन लिए गए हैं मेरी माँओं के आँसू
आँसू जिनसे सीखने थे मैंने अपने प्रेम के बोल
अपनी राधाओं को जो सुनाने थे छंद.
('हंस' और 'प्रेरणा' पत्रिकाओं और 'सुंदर लोग और अन्य कविताएँ' संग्रह में प्रकाशित)

1 comment:

Arvind Mishra said...

रट्टामार या तोता रटंत विद्या का यही फीका फल है !