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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Sunday, January 20, 2013

आदम की संतानें हैं इतनी बीमार


कितने आँसुओं का बोझ


 
एक दिन धरती फेंक देगी हमें शून्य में

नहीं सहा जाता इतना बोझ

आस्मान नहीं स्वीकारेगा हमारी यातनाएँ


कौन ब्रह्म हमें सँभालने अपनी हथेली पसारेगा


धरती के इस ओर से उस ओर

दुर्वासा के कदमों की थाप

काँप रहा गगन


एक व्यक्ति ढूँढने निकला है

आदि आदिम को

धरती और आस्मान विस्मित हैं

पूछ रहे एक दूसरे से कि किसकी गलती है

कि आदम की संतानें हैं इतनी बीमार


एक व्यक्ति योजनाएँ बना रहा है

कि वह हर बदले का बदला लेगा

बदलों की सूची बनाते हुआ वह रुक गया है

आदम तक पहुँच कर


क्यों फेंके थे पत्थर आदम ने

जब और कोई न था धरती पर उसके सिवा।

(2009; 'नहा कर नहीं लौटा है बुद्ध' में संकलित)

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