My Photo
Name:
Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Sunday, August 21, 2011

कास्मिक एनर्जी


आज 'हिंदू' अखबार में पढ़ा कि येदीउरप्पा ने गद्दी छोड़ने के पहले 'हज्जाम' शब्द को कन्नड़ भाषा से निष्कासित करने का आदेश दिया है। सतही तौर पर यह इसलिए किया गया कि हज्जाम शब्द के साथ हजामत करने वालों की अवमानना का भाव जुड़ा हुआ है - कन्नड़ भाषा में। हो सकता है कि 'हज्जाम' की जगह प्रस्तावित 'सविता' शब्द ठीक ही रहे। पर कन्नड़ भाषा का ज्ञान न होने की वजह से मुझे यह बात हास्यास्पद लगी कि जात पात का भेदभाव रखने वाली ब्राह्मणवादी संस्कृति से उपजे एक शब्द के लाने से अब तक हो रहा भेदभाव खत्म हो जाएगा। जून के महीने में मैं शृंगेरी गया था। वहाँ देखा घने जंगल के बीच 'सूतनबी' जलप्रपात का नाम बजरंगियों ने बदलकर कुछ और रख दिया है, चूँकि 'नबी' शब्द इस्लाम के साथ जुड़ा है। बहुत पहले शायद परमेश आचार्य के किसी आलेख में पढा था कि उन्नीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में कोलकाता विश्वविद्यालय की सीनेट ने प्रस्ताव पारित कर बांग्ला भाषा में प्रचलित कई अरबी फारसी के शब्दों के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी थी। यह प्रवृत्ति बंकिमचंद्र के लेखन से शुरू हुई थी - बंगाल में धर्म के आधार पर पहले बुद्धिजीवियों और बाद में व्यापक रूप से आम लोगों में हुए सांप्रदायिक विभाजन में बंकिम के उपन्यास 'आनंदमठ' की भूमिका आधुनिक भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है। इसका असर राष्ट्रीय स्तर पर कैसा पड़ा यह कहने की ज़रूरत नहीं है।

पुरातनपंथी और सांप्रदायिक विचार रखने वाले लोगों की यह खासियत है कि वे औरों को सहनशीलता की नसीहत देते हैं और खुद जबरन अपने खयाल दूसरों पर थोपते रहते हैं। हमारे संस्थान में अक्सर ऐसे कुछ लोग बिना औरों की परवाह किए पोंगापंथी एजेंडा चलाते रहते हैं। हाल में ऐसे एक वर्कशाप में बाहर से आए एक जनाब ने सबको अपनी 'कास्मिक एनर्जी' एक दृष्टिहीन छात्र पर केंद्रित करने की सलाह दी, ताकि उसकी दृष्टि लौट आए। इसके पहले कि बाकी लोगों को पता चले और लोग विरोध कर सकें, पोंगापंथी बंधु अपना काम कर गए।

Labels:

1 Comments:

Blogger P.N. Subramanian said...

कास्मिक एनर्जी ने क्या काम किया.

1:12 PM, August 21, 2011  

Post a Comment

<< Home