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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Saturday, March 11, 2006

आजीवन


फिर मिले
फिर किया वादा
फिर मिलेंगे।


बहुत दूर
इतनी दूरी से नहीं कह सकते
जो कुछ भी कहना चाहिए

होते करीब तो कहते वह सब
जो नहीं कहना चाहिए

आजीवन ढूँढते रहेंगे
वह दूरी
सही सही जिसमें कही जाएँगी बातें।

(साक्षात्कार- मार्च १९९७)


मुझे बार बार लग रहा है कि यह कविता मैं पहले पोस्ट कर चुका हूँ। अगर सचमुच की हो तो? बाप रे, पिटाई हो सकती है। चलो काफी दिनों तक पिटाई हुई नहीं (मसिजीवी के उल्टे सवालों को पिटाई थोड़े ही कहेंगे!) हो भी जाए तो क्या!

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3 Comments:

Blogger मसिजीवी said...

मुझे तो यह कविता रीपोस्‍ट नहीं लगी।

वैसे बंधु अब इतना भी बदनाम न करो। पिटते तो हम हैं। रोजाना केनन से (कहना न होगा केनन का प्रतिनिधित्‍व इस दुनिया में तो प्रोफेसरों से बंहतर कोई नहीं करता) ;)

9:12 PM, March 12, 2006  
Blogger अनुनाद सिंह said...

लाल्टू जी, नमस्कार !
आप उच्च-शिक्षा से जुडे हुए हैं, अनेकानेक सामाजिक गतिविधियों से जुडे हुए हैं और बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं | इसलिये आपसे बडी उम्मीदें हैं | मेरी इच्छा, शिक्षा और उससे जुडे भारतीय विषयों पर आपके विचार पढने की है | अनेक विचारक ऐसी राय जाहिर करते पाये जाते हैं कि सूचना-क्रान्ति के इस युग में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है | इस कारण मेरा यह निवेदन और अधिक महत्व रखता है |

7:12 PM, March 13, 2006  
Blogger लाल्टू said...

अनुनाद,
बहुत अच्छा लगा कि आपने लिखा।
लिखूँगा। ज़रुर लिखूँगा। नई जगह की व्यस्तताएँ हैं और कुछ निजी परेशानियाँ हैं, इसलिए जितना चाहता हूँ उतना लिख नहीं पाता। धीरे धीरे लिखूँगा।

7:24 PM, March 13, 2006  

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