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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Thursday, March 02, 2006

ले जा

अखबार की हेडलाइन हैः PM shows warmth, India heats up।
चलो इसी बहाने कुछ हल्ला, कुछ गुल्ला। बसंत के दिन हैं आखिर, सकल बन फूल रही सरसों।।।
ले जा बुश, प्रतिवाद-मुखरता के उस उत्सव में उड़ रही धूल ले जा, इस धूल में बसे अनंत जीवाणु तेरी नासिकाओं को खा जाएँ।
करोड़ों के मन से निकले अभिशाप में मेरी सांद्र वितृष्णा का एक बूँद तेरे लिए।

2 Comments:

Blogger मसिजीवी said...

इन 'करोड़ों' में एक मुझे भी गिनें
आज एक रैली में शामिल हुआ न न न वो बुश विरोधी विशाल रैली नही जो प्रकाश करात, मुलायम ने सजाई थी वरन उसी सड़क के कोने पर एक छोटी सी रैली जो थी तो बुश के साम्राज्‍यवाद के ही खिलाफ पर जिसके लिए सजे गुब्‍बारे, स्‍टाइल भरी टी शर्ट नहीं थीं और यह रैली प्रकाश की टीम द्वारा लगभग रौंद दी गई। चिंघाड़ते माइकों से बताया (गर्व से सूचना दी गई थी कि सौ लाउडस्‍पीकर लगाए गए हैं) कि इनकी सरकार (प्रकाश करात ने न जाने कौन सा अन्‍य रच लिया 'जिसकी' सरकार है, हमें तो यही पता है कि परिभाषाएं जो कहें पर सरकार तो कांग्रेस-वाम की ही है)की अमेरिका परस्‍त नीतियों के खिलाफ यह रैली है।

हे पोस्‍टमार्डन स्‍वागत हे पोस्‍टमार्डन प्रतिरोध
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय हे

11:44 PM, March 02, 2006  
Blogger Pratyaksha said...

वितृष्णा का एक बूँद तेरे लिए।
बिलकुल सही !
पर बावज़ूद इसके , फूल रही सरसों , सकल बन

9:23 AM, March 03, 2006  

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