समझ
नहीं आता
मुझे
भेटकी फ्राई और सालन के साथ
रोहू पसंद हैं
अंग्रेज़ी
टाइप के फिश फिले या चीनी झींगा
स्प्रिंग रोल पसंद हैं
पर
हर दिन मछली खाऊँ, ऐसा
नहीं हूँ
मीठा
ज़रूरत से ज्यादा ले लेता हूँ
आलू
अंडे या पकौड़े और मूढ़ी कभी भी
खा सकता हूँ
पर
दोनों वक्त चावल ही खाऊँ,
ऐसा नहीं
हूँ
रवींद्रसंगीत
और जन-गीत
दोनों सुनता हूँ
अदब
का शौक जन्मजात है
कथा-उपन्यास
खूब पढ़ता हूँ
पर
घर-परिवार
से उकता जाऊँ, ऐसा
नहीं हूँ
मैं
तो ऐसा ही हूँ, जैसा
हूँ
आम
डरपोक-सा
पढ़ा-लिखा
इंकलाब
के ख़्वाब देखता
दायरों
में बँधा-सिमटा
हुआ
चुनिंदा
अल्फाज़ लिए खेलता कविता करता
पर
कुछ है कि तुम्हें इतना चाहता
हूँ
और
यही काफी है कि
भूल
जाऊँ बाक़ी सब कुछ जो पसंद है
और
शामिल हो जाऊँ ख़्वाब को सच में
बदलने की लड़ाई में।
- पाठ (2018)
No comments:
Post a Comment