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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Sunday, November 03, 2013

मुक्ता दाभोलकर


पिछले एक पोस्ट में मैंने जिक्र किया था कि हमलोगों ने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के खिलाफ दुख और रोष प्रकट किया था। साथी भूपेंद्र ने उनकी बेटी मुक्ता के साथ संपर्क किया और 25 अक्तूबर को हमने उनका व्याख्यान रखा। साथ ही अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति की ओर से प्रशांत ने कुछ प्रयोग भी दिखलाए। मुक्ता बहुत ही अच्छा बोलती हैं। उनकी बातों में जेहनी प्रतिबद्धता झलकती है और साथ ही अपनी तकरीर में वह सहिष्णुता का अद्भुत नमूना पेश करती हैं। उस दिन हॉल खचाखच भरा हुआ था और चूँकि मैंने मंच सँभालने की जिम्मेदारी ली थी, आज तक कई साथी आ-आकर मुझे धन्यवाद कह रहे हैं कि यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। आखिर क्या वजह है कि लोगों ने इसे इतना पसंद किया। प्रतिबद्धता और सहिष्णुता ही दो बातें हैं जो अलग से दिखती हैं। कुछ लोग दुख साझा करने के मकसद से आए होंगे और मैंने मुक्ता से आग्रह भी किया था कि वह अपने पिता के मानवीय पक्ष पर बोले। पर मुक्ता ने निजी संदर्भों के साथ आंदोलन के पहलुओं को जोड़ कर लोगों को गहराई तक प्रभावित किया। सवाल जवाब देर तक चला। एक बात कई बार आई कि स्वयं नास्तिक होते हुए भी अंधविश्वास के खिलाफ लड़ने वालों को लोगों की धार्मिक आस्थाओं से आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यहाँ तक कि अगर किसी को आध्यात्मिक जीवन से बेहतर इंसान होने की प्रेरणा मिलती है तो वह अच्छी बात है। मूल बात धर्म या आस्था के नाम पर होते शोषण का विरोध है न कि आस्था मात्र का विरोध। 

मुझे ये बातें खास तौर पर अच्छी लगीं क्योंकि हम लंबे अरसे से यह कहते आए हैं कि वैज्ञानिक दृष्टि और चेतना एक बुनियादी मानवीय प्रवृत्ति है। इसमें और आस्था-जनित विश्वासों में भेद समझना ज़रूरी है। पर हर वक्त हर चीज़ को वैज्ञानिक दृष्टि से ही देखने की माँग रखना ठीक नहीं। विज्ञान या तर्कशीलता से इतर किसी सोच से जब संकट की स्थिति पैदा हो, जब किसी को चोट पहुँचती हो, तो वैज्ञानिक दृष्टि और तर्कशीलता के आधार पर चीज़ों को परखा जाना चाहिए। जैसे अगर किसी की आस्था का फ़ायदा उठाकर कोई ढोंगी व्यक्ति उसे लूटता है, तब हर संवेदनशील व्यक्ति के लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि इसका विरोध करे। अपने विरोध को सार्थक बनाने के लिए यह समझाना पड़ेगा कि आस्था के नाम पर कैसे ग़लत बातें कही जा रही हैं। यानी कि अंधविश्वास जो एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान के प्रति अन्याय करने का तरीका बन जाता है, वहाँ यह वैज्ञानिक तर्कशीलता से ही समझाना पड़ेगा कि यह ग़लत है। सवाल जवाब के दौरान मुक्ता ने ठोस उदाहरणों के साथ इस बात को समझाया। जैसे कोई बाबा उँगलियों से शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का दावा कर लोगों से पैसे लूट रहा था तो अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति ने इसका खुलासा किया और बाबा का भंडाफोड़ किया। यह ज़रूरी नहीं कि सामान्य धर्मभीरु लोगों को धर्म के खिलाफ कहा जाए, बस इतना कि उन्हें जागरुक किया जाए कि उनकी धार्मिकता का फ़ायदा उठाकर कुछ लोग कैसे उनका शोषण करते हैं।

 यह सवाल ज़रूर रह जाता है कि कैसे तय करें कि कोई भी मान्यता वैज्ञानिक दृष्टि के साथ संगति रखती है या नहीं। इसके लिए यह जानना होगा कि विज्ञान क्या है; इसलिए हर किसी को ज्ञान प्राप्ति के साधनों के बारे में जानना सीखना चाहिए। सामान्य तर्कशीलता मात्र ही विज्ञान नहीं है। हर तरह की आस्था की अपनी तर्कशीलता होती है। ईश्वर की धारणा अक्सर उपयोगी होती है, पर यह क्यों वैज्ञानिक धारणा नहीं है, इसे समझने के लिए विज्ञान की कुछ बुनियादी विशिष्टताओं के बारे में जानना ज़रूरी है। इस पर फिर कभी। और यह भी कि विज्ञान नामक संस्था भी धर्म जैसी संस्थाओं की तरह शोषण और विनाश का औजार होती रही हैं। कई लोग, खास तौर पर समाज विज्ञान में पिछली सदी के उत्तरार्द्ध में मुखर हुए उत्तर-आधुनिक  विद्वान इसे विज्ञान की संरचनात्मक सीमा मानते हैं, पर मैं इस बात से असहमत हूँ। मेरी नज़र में विज्ञान की एकमात्र सीमा भावनात्मकता यानी emotion को ज्ञान प्राप्ति के साधन के बतौर इस्तेमाल न कर पाना है। वैज्ञानिक दृष्टि या चेतना और वैज्ञानिक पद्धति भावनात्मकता को कोई जगह नहीं देती। यह विज्ञान की ताकत भी है और सीमा भी।


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5 Comments:

Blogger अफ़लातून said...

रपट पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।

6:58 PM, November 04, 2013  
Blogger दिलीप कवठेकर said...

Vigyan se bhi aage bramhagyan hai. Sahi likha hai.

7:03 PM, November 04, 2013  
Anonymous rakeshpd.avo10@gmail.com said...

we the advocates of Allahabad High Court organised a Smriti Sabha in the memory of Late Dr. Dabholaar inwhich about 70 Advocates participated in meeting. we have passed resolution for the enactment of law against superstition from the Central and State government.news has been published in Daily news papers at Allahabd and also posted on facebook.
rakesh prasad.

8:05 PM, November 04, 2013  
Blogger azdak said...

हूं. पढ़े. शुक्रिया.

9:33 AM, November 05, 2013  
Blogger Ek ziddi dhun said...

वाह एडवोकेट राकेश प्रसाद!कमाल कर दिया आपने, वह भी इलाहाबाद में। बधाई हो।

8:53 AM, November 06, 2013  

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