Monday, July 22, 2013

कैसा हूँ

मैं कैसा हूँ? बस जद्दोजहद में हूँ कि कैसे कहाँ जमूँ। 1 अगस्त से एक 
फ्लैट में जमने की उम्मीद है - फिर आगे की लड़ाई - सफाई, खाना बनाना वगैरह। 
जीवन। :-)



सत्रह साल पहले प्रकाशित एक कविता - रुको 
 
 रुको

कविता रुको
समाज, सामाजिकता रुको
रुको जन, रुको मन।

रुको सोच
सौंदर्य रुको
ठीक इस क्षण इस पल
इस वक्त उठना है
हाथ में लेना है झाड़ू
करनी है सफाई
दराजों की दीवारों की
रसोई गुसल आँगन की
दरवाजों की

कथन रुको
विवेचन रुको
कविता से जीवन बेहतर
जीना ही कविता
फतवों रुको हुंकारों रुको।

इस क्षण
धोने हैं बर्त्तन
उफ्, शीतल जल, 
नहीं ठंडा पानी कहो
कहो हताशा तकलीफ
वक्त गुजरना
थकान बोरियत कहो
रुको प्रयोग
प्रयोगवादिता रुको

इस वक्त
ठीक इस वक्त
बनना है
आदमी जैसा आदमी।
        (इतवारी पत्रिकाः ३ मार्च १९९७)


ला.

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