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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Friday, August 30, 2013

एक कविता कुछ सवाल

एक पुरानी कविता पढ़कर युवा कवि देवयानी ने कुछ सवाल उठाए।
यहाँ कविता और सवाल दोनों पेस्ट कर रहा हूँ।


छोटे बालों वाली लड़की 

छोटे बालों वाली लड़की मुझे अच्छी लगती है
ऐसा खुद से कहा उसे देखकर

उसकी आँखें बीत गए सालों में और धँस गईं थीं
पिछले कई बसंत
इंतज़ार करते किसी का
 
सालों बाद सोचा उसके लिए एक लंबी कविता लिखेगा
जिसमें उसके छोटे बालों में भर देगा सुंदरता के सागर

और वह उसके छोटे बालों पर खड़ा था
जो समूची पृथ्वी पर एक सपने की तरह फैले हुए थे

कलम कागज रख 
ढूँढता रहा
वह याद आती बहुत याद आती
मेरे बालों में तुम समा जाओ कह जाती 

तुम आओ
अपने छोटे बालों को लेकर आओ
मुझे तुम पर एक लंबी कविता लिखनी है

छोटे बालों वाली लड़की मुझे अच्छी लगती है
याद बन कविताओं में महकता रहा बसंत।                   (1990)
 
देवयानी:- इधर मैं स्त्री विषयक या प्रेम विषयक कविताओं को भी इस तरह पढ़ती हूं कि उसे लिखने वाला कौन है 

यदि पुरुष कविता में यह विषय आता है तो किस तरह आता है और स्त्री कविता में वही विषय आता तो किस तरह आता तो यह जो पंक्तियां हैं 
उसकी आँखें बीत गए सालों में और धँस गईं थीं
पिछले कई बसंत
इंतज़ार करते किसी का
 
इनमें जो अवसाद देखना है, वह क्‍यों है?  
 
सालों बाद सोचा उसके लिए एक लंबी कविता लिखेगा
जिसमें उसके छोटे बालों में भर देगा सुंदरता के सागर 
 
यह जो उसके बालों में सुंदरता के सागर भर देने की चाह है, यह कैसी चाह है? क्‍या छोटे बालों के द्वारा वह स्त्री स्‍वयं अपने लिए सौंदर्य के प्रतिमान नहीं गढ रही? क्‍या वह उन स्‍थापित प्रतिमानों को नकार नहीं रही? तो जो हैं उसमें सुंदरता न पा कर क्‍या कवि उसके छोटे बालों में सुंदरता भर देना चाहता है? कवि क्‍यों चाहता है सालों बाद उसके बारे में लंबी कविता लिखना  

 लड़कियों पर स्त्री और पुरुष दोनों ही कवि बहुत कुछ लिखते हैं, लडकों पर भी क्‍या कुछ इस तरह लिखा गया है? विषय के तौर पर वे क्‍यों अछूते छूट जाते हैं

मैं:-इतने सही सवाल उठ रहे हैं । काश कि तब उठे होते जब लिखी थी। अब तेईस सालों बाद मेरे पास जवाब नहीं हैं।
वैसे 'छोटे बालों वाली लड़की' स्त्री विषयक कविता नहीं है।

देवयानी:- मेरा आशय इतने मात्र से है कि उसमें  केंद्रीय पात्र स्त्री है, और यह कहना एक स्त्री के बारे में एक पुरुष का कहना है।
मैं:-सही।
(पुरुष पर अगली पोस्ट में)




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1 Comments:

Blogger प्रदीप कांत said...

और वह उसके छोटे बालों पर खड़ा था
जो समूची पृथ्वी पर एक सपने की तरह फैले हुए थे

sundar

9:10 PM, September 06, 2013  

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