डायरी में से पंद्रह दिन पहले के कुछ अंश -
2 मई
2013 -
अज़ीम
प्रेमजी फाउंडेशन के दफ्तर
में। अप्रेफा (या
निधि कहें तो अप्रेनि)
एक निजी
संस्थान द्वारा स्कूली शिक्षा
में गंभीर हस्तक्षेप का प्रयास
कर रहा है। संस्थान के विभिन्न
कार्यक्षेत्रों में एक
विश्वविद्यालय है, जिसमें
वरिष्ठ अध्यापक के बतौर कल
से जुड़ा हूँ। कल यहाँ मई दिवस
की छुट्टी थी। इसलिए आज रस्मी
कार्रवाइयाँ। फाउंडेशन का
दफ्तर सर्जापुर नामक क्षेत्र
में है। विश्वविद्यालय यहाँ
से 12 कि.
मी. दूर
पी ई एस कालेज कैंपस से काम कर
रहा है।
थोड़ी
चिढ़ के साथ ही इधर-उधर
जा रहा हूँ। निधि और व्यवसाय
निकाय में फर्क है। निधि की
बड़ी गाड़ियाँ हैं जो विश्वविद्यालय
और निधि के दफ्तर के बीच दिन
में दो बार आती जाती हैं। पर
छोटी गाड़ियाँ नहीं हैं,
जिनसे नए आए
लोगों को इधर-उधर
ले जाया जा सके। सो मलूकदास
खुद ही धूप खा रहे हैं। हालाँकि
बंगलूर का मौसम हैदराबाद से
बेहतर है, फिर
भी तीखी धूप में चलने फिरने
से और भीड़ भरी ट्रैफिक की धूल
से परेशान हूँ।
जहाँ
ठहरा हूँ वहाँ बहुत ही छोटा
कमरा है। कल पहुँचकर बहुत हताश
हुआ था। अब लग रहा है कि शायद
ठीक ही है, हालाँकि
वे पैसे ज्यादा ले रहे हैं,
ऐसा ज़रूर
लगता है।
दोपहर
-
अप्रेनि
से अप्रेवि आ गया हूँ। लंच के
बाद दिए लैपटॉप में से
विंडोज़ हटाकर उबुंटु लिनक्स
डाल रहा हूँ। जिस काम के लिए
मन बनाकर यहाँ आया हूँ -
मुख्यतः हिंदी लेखन,
क्या सचमुच
कर पाऊँगा? दिमाग
सुन्न सा ही रहता है। स्थितियों
से समझौता करने में ही लगा
रहता है।
कम
से कम अनुवाद का काम शुरू कर
दूँ तो कुछ तो बात आगे बढ़े।
आज 'गर अप्रेनि न गया होता तो
अपने कुछ काम साथ ले आता। पर
अब कुछ ले नहीं आया हूँ तो बस
उबुंटु डालने में ही वक्त जाया
कर रहा हूँ। फिलहाल तो सब ठीकठाक
चल रहा है।
थोड़ी
देर पहले राजेश उत्साही से
बात हुई तो पता चला कि मातृभाषा
में पढाने और अध्ययन सामग्री
तैयार करने को लेकर यहाँ बहस
चल रही है। कम से कम इस पर मैं
इनकी थोड़ी बहुत मदद कर पाऊँगा।
4 मई
2013 -
उदासी
का सबब क्या है? खयाल
आते हैं, चले
जाते हैं। कल तक ठीक चल रहा
था। सुबह उठा तो पाँच फोन कॉल
मिस किए हुए और एक मेसेज। ... देखा कि कल जब फोन वाइब्रेट
से बदला तो म्यूट कर दिया था।
हमेशा जब भी कोई दुर्घटना होती
है ऐसी ही ग़लती होती है। मैंने
नींद में बड़ा अजीब सा सपना
देखा था। मैंने ग़लती से मो.
को एक फाइल दे दी जिसमें
चे. ने उसके बारे
में बुरी बातें लिखी थीं। फिर
मैं उसके घर गया कि वह फाइल
वापस ले लूँ। मो. की शादी
इस साल जनवरी में हुई है। शादी
के बाद वह वापस अमेरिका चली
गई है। सपने में वह शादीशुदा
थी। वह, उसके
माता-पिता,
उसका पति,
सभी मुझ पर
नाराज़। बड़ा अजीब सपना।
क्योंकि न कभी चे. ने मो.
के बारे में कुछ कहा या लिखा
और न ही ऐसी कोई फाइल है। सुबह
फोन में मेसेज ... था कि
पु... फिर अस्पताल में। पूछ
रही है कि क्या करे। ...
सुबह-सुबह
डॉक्टर की राय रिपोर्ट में दर्ज़ कराने के लिए जाना
था। नई नौकरी के पहले स्वास्थ्य
की छानबीन। ...
अपोलो
क्लिनिक में दस बजे पहुँचना
था, पहुँचा
नौ बजकर दस मिनट पर। फिर नीचे
बी डी ए कांप्लेक्स में कॉफी
पी। ... एक
कप कॉफी सोलह रुपए में। बैठे
बैठे सोच रहा था कि कम से कम
यहाँ की गाथा तो डायरी नुमा
ढंग से लिख डालूँ। साथ ही
बीस सालों से रुके उपन्यास के बारे में सोचा कि
अपने चरित्रों प्रदीप और शोभा के बेटे को
पु... जैसा चरित्र बनाकर कहानी
आगे बढ़ाई जा सकती है। यही सब
सोच रहा था - गुस्सा
और गुस्से को भूलना, अपनी
स्थिति पर ग्लानि, दुख। ... फिर लगा कि डॉक्टर
देखेगी तो बात बढ़ेगी।
डॉक्टर
चालीस मिनट लेट आई। वैसे ही
पहले ही दिन आकर सारी जाँच
करवा ली थी, पर
जनाब थीं नहीं तो उस दिन उनकी राय
न लिखी गई। गनीमत कि आज आ गईं।
सब कुछ ठीक था ही। अच्छी बात
यह कि मेरा स्वास्थ्य अभी भी
ठीक है। फि... के बारे में
मैंने बतलाया नहीं। क्या
फायदा। कहाँ वक्त है कि सर्जरी
करवा कर चार हफ्ते आराम करूँ।
लौटा
तो थकान तो थी ही। अपने नए (जो
कि दरअसल पुराना है, ...) लैपटॉप
में कुछ और चीज़ें इंस्टॉल
करनी थीं, जैसे
स्काइप। आजकल शायद उम्र बढ़ने
से सही बात झट से दिमाग में
आती नहीं। मैं सुबह सोचता रहा
कि मैं तो पुलकी को फोन कर नहीं
पाऊँगा, क्योंकि
यहाँ लैंडलाइन है नहीं और
मोबाइल में अंतर्राष्ट्रीय
कॉल की सुविधा नहीं। याद ही
नहीं आया कि हैदराबाद वाले
लैपटॉप में स्काइप इंस्टॉल्ड
है। खैर नए वाले में स्काइप
डाल दिया। रात को पु... को फोन
करूँगा।
यहाँ
मौसम हैदराबाद से तो बेहतर
है ही। पहले दो दिन ज़रा धूप
में चलने से परेशान था। पर ओ
आर एस के साथ काफी पानी पिया
हुआ था, तो
ठीक ही रहा। अपोलो क्लिनिक
में पहले दिन काउंटर वाले बंदे
ने कहे नहीं कि पेशाब की भी
जाँच होनी है और मैंने रेस्ट
रूम का पूछा तो दिखा भी दिया।
बाद में एक लिटर पानी पीना
पड़ा कि पेशाब कर सकूँ।
इतना
लिख कर अच्छा लग रहा है कि कुछ
तो लिखा। वैसे तो मुझे पिछले
तीन दिनों में मिले लोगों पर
लिखना चाहिए। कल एम ए के पहले
बैच का फेयरवेल काफी अच्छा
रहा। बड़ी उम्र के अध्यापकों
ने भी छात्रों के साथ नाचा।
कुछ अद्भुत बातें थीं। जैसे
सेकंड ईअर के लड़कों ने बंगलौर
के अलग अलग इलाकों को लेकर एक
चुहल वाला गीत गाया (जो
वे काफी दिनों से गाते रहे
हैं), जिसमें
बात यह कि मैं सारे शहर ढूँढ
कर परेशान कि जिस पर दिल हारा
था, वह
कहाँ है। फिर याद आता है कि वह
तो कुणप्पम अग्रहारा (वर्त्तमान
कैंपस का क्षेत्र) में
हुआ था। प्रथम वर्ष की लड़कियों
ने इसके जवाब में पलट कर गीत
तैयार किया और गाया - यह
सृजनात्मक उपलब्धि थी। अभी
छात्र कम हैं, इसलिए
छात्रों और अध्यापकों में
दूरी भी कम है। बाद में स्थिति
संभवतः ऐसी न रहे।
आज
दोपहर में गली का चक्कर लगाया।
किसी से किराए के मकान के बारे
में पूछा भी। ...अब यहीं
ठहरने का मन बना रहा हूँ। दूसरों
से सीमित ही मदद मिलती है। सोच
रहा हूँ कि एलियाँस फ्रॉंसे
आदि के कार्यक्रमों वगैरह के
बारे में पता करूँ। कल सुजित
के घर जाना है। वहाँ पति और
गेल भी आएँगे। इस वक्त तो अवसाद।
कल
राज्य के चुनाव हैं। मोदी ने
गुजरात से आकर काफी सांप्रदायिक
भाषण दिए हैं, फिर
भी उम्मीद है कि बी जे पी सरकार
नहीं बना पाएगी। कल अमेरिका
के रटगर्स यूनिवर्सिटी से आई
दीपा कुमार के पश्चिम और खासतौर
पर अमेरिका द्वारा मुस्लिम
अस्मिता की दहशतगर्दी की छवि बनाने
पर भाषण के बाद सवाल जवाब से
पता चला कि ... कुल मिलाकर माहौल बढ़िया। 2
को भी एक
बढ़िया भाषण था, जो
मैं सुन नहीं पाया क्योंकि
मुझे बाद में पता चला। यहाँ
व्याख्यानों की शृंखला ... बेहतर है, ऐसा
लग रहा है।
6 मई
2013 -
कल
सुजित के घर विश्वंभर पति और
गेल भी आए थे। देर तक बातचीत
हुई। सुजित ने झींगा (चिंगड़ी),
मटन और बैंगन
की सब्जी बनाई थी। पति और गेल
बांछाराम की दूकान से छेना
का संदेश लाए थे। फिर आइस्क्रीम
के साथ फलों का सलाद। बढ़िया।
... जाते हुए माडावाली में
बस बदलनी थी। पहली बस से जहाँ
उतरना था, वहीं
से बस लेनी थी, पर
मैं उतरकर लोगों से पूछकर आगे
पीछे घूमता रहा, एक
बार विपरीत दिशा की बस में भी
चढ़ गया। बीस-तीस
मिनट चक्कर लगाने के बाद वहीं
पिछले बस स्टॉप पर आकर देर तक
खड़े रहकर बस पकड़ी। दूसरी बस
से सही स्टॉप पर नहीं उतरा
और दो स्टॉप आगे से फिर उल्टी
बस पकड़कर चालीस मिनट देर से
पहुँचा।
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