Tuesday, June 13, 2006

इंसान की शिद्दत

मैं स्वभाव से सैलानी नहीं हूँ. कहीं जाता हूँ तो लोग कैमरे लेकर तस्वीरें खींच रहे होते हैं और मैं देख रहा होता हूँ कि एक छोटा बच्चा मिट्टी में लोट कर माँ बाप को तंग कर रहा है. पर घूमने का मौका मिलता है खुशी से साथ हो लेता हूँ. इस बार हमारे मेजबान प्रोफेसर ने रविवार को स्टोनहेंज दिखा लाने का न्योता दिया तो सोचा कि चलना चाहिए, क्योंकि स्टोनहेंज (हैंगिंग स्टोंस) ब्रिटेन की सबसे पुरानी प्रागैतिहासिक धरोहर है.

तो इस रविवार हम इस अद्भुत के सामने थे. पता नहीं कितनी बार मानव और धरती पर प्राण के उद्गम के प्रसंग में स्टोनहेंज की तस्वीर देखी थी. कई लोगों ने इसे देवताओं का दूसरे ग्रहों से आकर धरती पर मानव की सृष्टि करने का प्रमाण माना है. अब वैज्ञानिक जगत में यह माना जाता है कि साढ़े पाँच सौ साल पहले समुद्र के जरिए बड़े पत्थरों को लाकर प्रागैतिहासिक मानव ने यह करामात खड़ी की. तीन अलग अलग चरणों में इसका निर्माण हुआ. कोई स्पष्ट कारण तो पता नहीं कि क्यों यह बनाया गया पर कई अनुमान हैं, जिनमें ज्योतिष, धार्मिक रस्म आदि हैं.

सबसे अजीब चीज़ मुझे यह लगी कि खड़े पत्थरों के ऊपर छोटे पिरामिड के आकार के wedges बनाए गए और इनपर लिटाए गए पत्थरों में छेद किए गए, ताकि ये बिल्कुल फिट बैठें. बिल्कुल जैसे लकड़ी का काम होता है. मुझे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा कि वाकई मीलों दूर से इतने बड़े पत्थर लाए गए, जब चारों ओर जंगल होते थे, कोई रास्ता नहीं होता था, कोई गाड़ी नहीं होती थी.

मैं उन्हीं इंसानों का वंशज हूँ. कितनी शिद्दत से कितने हजारों लोगों ने मिलकर वर्षों मेहनत कर इसे बनाया. सोच कर गर्व भी होता है और चारों ओर व्याप्त अहं और पाखंड से नफरत भी बढ़ती है.

2 comments:

प्रेमलता पांडे said...

अहं और पाखंड तब भी था और मेहनत आज भी है। तब दायरा था और अब विस्तार है।
प्रेमलता

लाल्टू said...

क्या बात मन की बात! न केवल पाखंड, गुलामी और अत्याचार के बिना लगता नहीं कि इस तरह का निर्माण कार्य संभव हुआ होगा. मेरा सलाम उनको है जिन्होंने यह अत्याचार सहा और ऐसा अद्भुत काम किया, जो सदियों तक ऋतुचक्र और संक्रांतियों के आगमन की सटीक जानकारी देता रहा.