पूछो कि क्या तुम्हारी साँस तुम्हारी है
क्या तुम्हारी चाहतें तुम्हारी हैं
क्या तुम प्यार कर सकते हो
जीवन से, जीवन के हर रंग से
क्या तुम खुद से प्यार कर सकते हो
धूल, पानी, हवा, आस्मान
शब्द नहीं जीवन हैं
जैसे स्वाधीनता शब्द नहीं, पहेली भी नहीं
युवाओं, मत लो शपथ
गरजो कि जीवन तुम्हारा है
ज़मीं तुम्हारी है
यह ज़मीं हर इंसान की है
इस ज़मीं पर जो लकीरें हैं
गुलामी है वह
दिलों को बाँटतीं ये लकीरें
युवाओं मत पहनो कपड़े जो तुम्हें दूसरों से अलग नहीं
विच्छिन्न करते हैं
मत गाओ युद्ध गीत
चढ़ो, पेड़ों पर चढ़ो
पहाड़ों पर चढ़ो
खुली आँखें समेटो दुनिया को
यह संसार है हमारे पास
इसी में हमारी आज़ादी, यही हमारी साँस
कोई स्वर्ग नहीं जो यहाँ नहीं
जुट जाओ कि कोई नर्क न हो
देखो बच्चे छूना चाहते तुम्हें
चल पड़ो उनकी उँगलियाँ पकड़
गाओ गीत कि कोई नहीं सर्वज्ञ, कोई नहीं भगवान
हम ही हैं नई भोर के दूत
हम इंसां से प्यार करते हैं
हम जीवन से प्यार करते हैं
स्वाधीन हैं हम।
7 comments:
वाह साब. ख़ूब.
वाह! बहुत सुन्दर.बधाई.
पिछले पूरे वर्ष में पढी सब से श्रेष्ठ कविता!
वाह सर, यह तो बहुत खूब रही. आप अपनी कोई कवितायें क्यों नहीं पढ़ते क्लास में कभी.
उत्साह वर्धक कविता । वास्तव में जीवन को किस प्रकार से जीना चाहिए बताती है हम युवकों को । सुंदर रचना के लिए धन्यवाद्!
उत्साह वर्धक कविता । वास्तव में जीवन को किस प्रकार से जीना चाहिए बताती है हम युवकों को । सुंदर रचना के लिए धन्यवाद्!
nice composition !!
posting one that i remember on the same line:
aadmi karta hai paida aadmi hone ka bhram....
kab shuru hoga yahan par aadmi hone ka kram.....
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