Saturday, July 18, 2020

चिरंतन-शाश्वत जैसे सुंदर लफ्ज़ गढ़े गए

आज़ादी

सबके बालों में फूल सजाए गए, उनमें काँटे भरे थे
रंग-बिरंगी पंखुड़ियों के बावजूद चुभन तीखी रही, तल्खी बढ़ती रही

कहानियाँ गढ़ी गईं, चिरंतन-शाश्वत जैसे सुंदर लफ्ज़ गढ़े गए
दर्जनों ब्याहे गए एक शख्स के साथ 
सबको मुकुट पहनाया गया  
कि एक धुन पर एक लय में नाचो
एक अंगवस्त्र पहनो

इन सबसे, इन सबमें जन्मा मैं।
मेरे जिस्म में खरोंचों की भरमार है।

देखता हूँ कि आस्मां रंगों से सजा है
हवाओं से पूछता हूँ कि मैं कौन हूँ
और मुझे बंद कोठरियों में धकेल दिया जाता है
खिड़कियों पर परदों में से छनकर आती है नीली बैंगनी रोशनी
आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं कि कोई गा रहा आज़ादी के सुर

तड़पता एक ओर हाथ बढ़ाता हूँ
कि कोई दूसरी ओर से कहता है - आज़ादी
कब मुझे कहा जाता है कि मैं रो नहीं सकता

मैं और कुछ नहीं चाहता 
बस यही कि मुझे रो लेने दो।         (विपाशा - 2019)

No comments: