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उनका क्या करें

एक मित्र ने बतलाया कि बंगाली बिरादरी रात को बारह बजे कहीं पूजा के लिए जाने की सोच रही है। काली पूजा है रात को होती है। मैंने कहा कि मैं पूजा आदि में रूचि नहीं रखता। मुझे लगता है कि पूजा का हुल्लड़ बच्चों के लिए बढ़िया या फिर आप धार्मिक प्रवृत्ति के हों। मेरा तो मानना है कि कोलकाता में कानून बनाना चाहिए कि एक वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में एक से ज्यादा पूजा मंडप नहीं होंगे। इससे लोगों में यानी आस पास के मुहल्लों के लोगों में भाईचारा भी बढ़ेगा। पूरे शहर में फिर भी हजार मंडप तो होंगे ही और इतने कम नहीं। आखिर भगवान मानने वालों को थोड़ा सा चल फिर के भगवान तक पहुँचने कि कोशिश तो करनी चाहिए।

मुझे कोई आपत्ति नहीं कि कोई ईश्वर अल्लाह रब्ब मसीहा आदि में यकीन करता है। मैं एक हद तक साथ चलने को भी तैयार हूं, पर दूर तक चले गए तो फिर आप कर्मकांडों से अलग नहीं हो सकते। और वहां मुझे दिक्कत है।

वैसे काश मेरा भी कोई मसीहा होता, कम से कम अपना रोना सुनाने के लिए तो कोई होता। इसलिए धार्मिक लोगों से मुझे ईर्ष्या ही होती है। कोई ज्यादा तंग करे तो फिर चिढ़ भी होती है। पर ठीक है, वह हमें झेलते हैं, तो हम भी उन्हें झेल लेते हैं। पर उनका क्या करें जो बच्चे नहीं पर आधी रात को पटाखा फटायेंगे।

इधर लग रहा है कि भारत और इंगलैंड में कोई समझौता हुआ है। हम वहां हारेंगे तुम यहाँ हारो। अच्छी बात यह कि महीने भर पहले मैंने टी वी बंद कर दिया है। पर फ़िल्में देखता रहता हूं। इधर कुछ अच्छी हिंदी फ़िल्में देखीं। देल्ही बेली, दास विदानिया आदि। बढ़िया।

आज कल मन नहीं करता चिट्ठा लिखने का। कुछ लिखता हूं तो जैसे भरने के लिए । इधर अरसे बाद अंग्रेज़ी में भी लिखना शुरू किया। अंग्रेज़ी लिखते हुए तो जैसे मेरा दिमाग भी रुक जाता है। अजीब बात है कि सारा दिन अंग्रेज़ी बोलता हूं, सारा काम अंग्रेज़ी में करता हूं, यहाँ तक कि टाइपिंग भी अंग्रेज़ी से ट्रांस्लिटरेट करके करना ज्यादा आसान लगता है, फिर भी अंग्रेज़ी में लिखने में चिढ़ होती है।

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इधर लग रहा है कि भारत और इंगलैंड में कोई समझौता हुआ है। हम वहां हारेंगे तुम यहाँ हारो।
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विचार तो सभी के लिये विचारणीय है

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