https://www.brainpickings.org/2016/02/24/walt-whitman-democratic-vistas/
(अनुवाद मेरा है)
जैसे हालात आज देश में हैं, समाज के कुछ हिस्सों को औरों से लकीर खींच कर अलग रखना - उन्हें औरों की तरह सुविधाएँ न देना, उन्हें बिला-वजह अपमान और निचले स्तर पर रखना - इससे अधिक बड़ा खतरा किसी राष्ट्र के लिए और कुछ नहीं हो सकता।
ह्विटमैन कहते हैं कि बेहतर बराबरी की ओर बढ़ने के लिए सबसे अच्छा औजार अदब है - ऐसा अदब जो छूटे हुओं की आवाज़ सामने लाता है, जो उनकी छटपटाहट को उरूज की ओर ले जाता है, उसे फैलाता है और उसमें ऐसी उमंग भर देता है जो उनके लिए समाज में अपनी अमिट भागीदारी का अधिकार दिखलाते अक्स बन कर आती है।
...
ज़रूरत है ऐसे अदब की - नई ज़मीन पर खड़े अदब की, जो मौजूदा पैमानों में बसी ज़मीन की नकल नहीं है, या कि वाहवाही के पीछे भागता नहीं है... बल्कि ऐसे अदब की जो ज़िंदगी के बुनियाद से जुड़ा हो, जिसमें नैतिकता हो, जो विज्ञान-संगत हो, जो काबिलियत के साथ सभी बुनियादी मसलों और ताकतों से जूझ सके, लोगों को इल्म दे और उन्हें प्रशिक्षित करे - और, जिसके अंजामों में शायद सबसे बड़ी बात यह निकले कि वह स्त्री को पूूरी तरह मुक्त कर सके... जिससे कि हर तरफ ताकतवर और खूबसूरत स्त्री जाति का होना निश्चित हो जाए...
Of all dangers to a nation, as things exist in our day, there can be no greater one than having certain portions of the people set off from the rest by a line drawn — they not privileged as others, but degraded, humiliated, made of no account.
The supreme tool of reconstructing a more equal society, Whitman asserts, is literature — a body of literature that gives voice to the underrepresented, that elevates and expands and invigorates their spirits by mirroring them back to themselves as indelibly worthy of belonging to society.
...
A new founded literature, not merely to copy and reflect existing surfaces, or pander to what is called taste … but a literature underlying life, religious, consistent with science, handling the elements and forces with competent power, teaching and training men — and, as perhaps the most precious of its results, achieving the entire redemption of woman … and thus insuring to the States a strong and sweet Female Race… — is what is needed.
(अनुवाद मेरा है)
जैसे हालात आज देश में हैं, समाज के कुछ हिस्सों को औरों से लकीर खींच कर अलग रखना - उन्हें औरों की तरह सुविधाएँ न देना, उन्हें बिला-वजह अपमान और निचले स्तर पर रखना - इससे अधिक बड़ा खतरा किसी राष्ट्र के लिए और कुछ नहीं हो सकता।
ह्विटमैन कहते हैं कि बेहतर बराबरी की ओर बढ़ने के लिए सबसे अच्छा औजार अदब है - ऐसा अदब जो छूटे हुओं की आवाज़ सामने लाता है, जो उनकी छटपटाहट को उरूज की ओर ले जाता है, उसे फैलाता है और उसमें ऐसी उमंग भर देता है जो उनके लिए समाज में अपनी अमिट भागीदारी का अधिकार दिखलाते अक्स बन कर आती है।
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ज़रूरत है ऐसे अदब की - नई ज़मीन पर खड़े अदब की, जो मौजूदा पैमानों में बसी ज़मीन की नकल नहीं है, या कि वाहवाही के पीछे भागता नहीं है... बल्कि ऐसे अदब की जो ज़िंदगी के बुनियाद से जुड़ा हो, जिसमें नैतिकता हो, जो विज्ञान-संगत हो, जो काबिलियत के साथ सभी बुनियादी मसलों और ताकतों से जूझ सके, लोगों को इल्म दे और उन्हें प्रशिक्षित करे - और, जिसके अंजामों में शायद सबसे बड़ी बात यह निकले कि वह स्त्री को पूूरी तरह मुक्त कर सके... जिससे कि हर तरफ ताकतवर और खूबसूरत स्त्री जाति का होना निश्चित हो जाए...
Of all dangers to a nation, as things exist in our day, there can be no greater one than having certain portions of the people set off from the rest by a line drawn — they not privileged as others, but degraded, humiliated, made of no account.
The supreme tool of reconstructing a more equal society, Whitman asserts, is literature — a body of literature that gives voice to the underrepresented, that elevates and expands and invigorates their spirits by mirroring them back to themselves as indelibly worthy of belonging to society.
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A new founded literature, not merely to copy and reflect existing surfaces, or pander to what is called taste … but a literature underlying life, religious, consistent with science, handling the elements and forces with competent power, teaching and training men — and, as perhaps the most precious of its results, achieving the entire redemption of woman … and thus insuring to the States a strong and sweet Female Race… — is what is needed.
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