Sunday, December 30, 2012

छब्बीस साल पहले लिखी एक रचना


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किसी दिन तू आएगी

तू जो मेरे जन्म से
मौत तक
मुझसे जुड़ी है
तेरे कठिन कोमल हाथों में खिलता
तेरे आँसुओं को पहचानता
तेरी चाह में भटकता
तेरी मांसलता में
खुद को छिपाता
तेरे दिए बच्चों से खेलता
तुझे रौंदता रहा हूँ

तुझे तो पता है
कितना डरा हुआ हूँ मैं
कितना घबराता हूँ तुझसे
फिर भी
तेरा गला दबोचता हूँ
जानता हूँ
हर शोषित की तरह
तुझे भी पता है
कि यह सब बदलेगा
किसी दिन
तू बाजारों में पत्रिकाओं के
मुख-पृष्ठों पर और
रसोइयों में मिट्टी के तेल की
आग से
मरेगी नहीं
जानता हूँ किसी दिन तू आएगी
मुझे ले चलने

उस दिन हमारे शरीर पर
शोषण और भूख के
कपड़े नहीं होंगे

उस दिन हम केवल समानता पहनेंगे
देखेंगे
चारों ओर सब कुछ

बदल गया होगा
पार्थिव सौंदर्य में।
(१९८६)

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