वागर्थ के नवंबर अंक में छः कविताएँ आयी हैं। आखिरी दो कवितायें मिलकर एक हो गयी हैं। यानी कि छठी कविता के शीर्षक का फोन्ट साइज कम हो गया है। यहाँ दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ।
कल चिंताओं से रातभर गुफ्तगू की
कल चिंताओं से रातभर गुफ्तगू की
बड़ी छोटी रंग बिरंगी चिंताएँ
गरीब और अमीर चिंताएँ
स्वस्थ और बीमार चिंताएँ
सही और गलत चिंताएँ
चिंताओं ने दरकिनार कर दिया प्यार
कुछ और सिकुड़ से गए आने वाले दिन चार
बिस्तर पर लेटा तो साथ लेटीं थीं चिंताएँ
करवटें ले रही थीं बार बार चिंताएँ
सुबह साथ जगी हैं चिंताएँ
न पूरी हुई नींद से थकी हैं चिंताएँ।
***************************
वैसे सचमुच कौन जानता है कि
वैसे सचमुच कौन जानता है कि
दुःख कौन बाँटता है
देवों दैत्यों के अलावा पीड़ाएँ बाँटने के लिए
कोई और भी है डिपार्टमेंट
ठीक ठीक हिसाब कर जहाँ हर किसी के लेखे
बँटते हैं आँसू
खारा स्वाद ज़रुरी समझा गया होगा सृष्टि के नियमों में
बाकायदा एजेंट तय किए गए होंगे
जिनसे गाहे बगाहे टकराते हैं हम घर बाज़ार
और मिलता है हमें अपने दुःखों का भंडार।
पेड़ों और हवाओं को भी मिलते हैं दुःख
अपने हिस्से के
जो हमें देते हैं अपने कंधे
वे पेड़ ही हैं
अपने आँसुओं को हवाओं से साझा कर
पोंछते हैं हमारी गीली आँखें
इसलिए डरते हैं हम यह सोचकर
कि वह दुनिया कैसी होगी
जहाँ पेड़ न होंगे।
कल चिंताओं से रातभर गुफ्तगू की
कल चिंताओं से रातभर गुफ्तगू की
बड़ी छोटी रंग बिरंगी चिंताएँ
गरीब और अमीर चिंताएँ
स्वस्थ और बीमार चिंताएँ
सही और गलत चिंताएँ
चिंताओं ने दरकिनार कर दिया प्यार
कुछ और सिकुड़ से गए आने वाले दिन चार
बिस्तर पर लेटा तो साथ लेटीं थीं चिंताएँ
करवटें ले रही थीं बार बार चिंताएँ
सुबह साथ जगी हैं चिंताएँ
न पूरी हुई नींद से थकी हैं चिंताएँ।
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वैसे सचमुच कौन जानता है कि
वैसे सचमुच कौन जानता है कि
दुःख कौन बाँटता है
देवों दैत्यों के अलावा पीड़ाएँ बाँटने के लिए
कोई और भी है डिपार्टमेंट
ठीक ठीक हिसाब कर जहाँ हर किसी के लेखे
बँटते हैं आँसू
खारा स्वाद ज़रुरी समझा गया होगा सृष्टि के नियमों में
बाकायदा एजेंट तय किए गए होंगे
जिनसे गाहे बगाहे टकराते हैं हम घर बाज़ार
और मिलता है हमें अपने दुःखों का भंडार।
पेड़ों और हवाओं को भी मिलते हैं दुःख
अपने हिस्से के
जो हमें देते हैं अपने कंधे
वे पेड़ ही हैं
अपने आँसुओं को हवाओं से साझा कर
पोंछते हैं हमारी गीली आँखें
इसलिए डरते हैं हम यह सोचकर
कि वह दुनिया कैसी होगी
जहाँ पेड़ न होंगे।
Comments
न पूरी हुई नींद से थकी हैं चिंताएँ।
" very well expressed liked reading it.....these lines are near to the lifa and truth.."
Regards
aapane antim kavita ko sahi kar diya achchha kiya.
thankx.