Saturday, January 19, 2019

मेरे इतिहास की सुबह


सुबह

कसौली के पहाड़ दिखलाने वाली साफ सुबह।
सुबह है सुबह जैसी। चाय-नाश्ता, कपड़े धोना, नहाना, दफ्तर जाना वाली सुबह। 
फिर भी सुबह जैसी सुबह। 
चाहता हूँ सुबह के पहाड़ पर चढ़ूँ। 

इतिहासकार प्रधानमंत्री की सुबहों के बारे में लिखते हैं। मैं ढूँढता हूँ सुबह की किताब 
में छूट गए पन्नों में सुबह। 
पुराने घर के पिछवाड़े और जंगली गुलाब की गंध भरी सुबह। सड़क पर पड़ा सिक्का
मिलने के सुख की सुबह। 
छोटी-छोटी मजदूरियों से मिली छोटी बख्शीशों की सुबह। इतिहास जो मेरा है,  
मेरे इतिहास की सुबह।                  - (विपाशा - 2018) 
 
Morning
 
Clear morning with a view of Kasauli hills. 
Morning comes as the morning does. Morning of breakfast, washing 
clothes, leaving for work. 
And yet it is the morning as the morning should be. 
I wish to climb the morning hills. 
 
Historians write on the mornings of the prime minister. I look for the 
morning I lost in history books. 
The backyard of old homes and a morning filled with the fragrance of 
 wild flowers. The morning of the pleasure of finding a coin on the street.
Morning of small tips from petty consignments. My history, the morning 
of my history. 
 

No comments: