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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Sunday, June 08, 2014

सात कविताएँ - जीवन


नहीं

नहीं बनना मुझे ऐसी नदी
जिसे पिघलती मोम के
प्रकाश के घेरे में घर चाहिए

शब्द जीवन से बड़ा है यह
ग़लतफहमी जिनको हो
उनकी ओर होगी पीठ

रहूँ भले ही धूलि सा
जीवन ही कविता होगी
मेरी।

('एक झील थी बर्फ की' में संकलित)

पहली कविता

जीवन।
 
लंबी कविता
 
जीवन।


छोटी कविता
 
जीवन।


मुक्तछंद कविता
 
जीवन।


छंदबद्ध कविता
 
जीवन।

आखिरी कविता

जीवन।

(रविवार डॉट कॉम - 2010)

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1 Comments:

Blogger प्रदीप कांत said...

जीवन - एक पूरी कवित

7:25 PM, June 29, 2014  

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