स्मृति
बड़ी
सुबह दरवाज़े पर दस्तक एक स्मृति।
साथ
सही-गलत
खाते में मौजूद अन्य स्मृति।
इन
दिनों अकेले में भी टेलीफोन
पर कंप्यूटर पर।
शाम
शायरी जाम साकी बन आती स्मृति।
उसके
अलग अंदाज़ अलग स्मृति।
स्मृतियों
की भी स्मृति।
अनंत
स्नायुतंत्र।
कौन
भारमुक्त।
अंत
तक जीती स्मृति।
फिर
भी धन्यवाद कि दस्तक देती
स्मृति।
धन्यवाद
कि वापस
मनःस्थिति
- अवसाद।
वापस
कवि की उक्ति
फिर
भी शांति,
फिर भी
आनंद
वापस
कवि की नियति।
मैं
अब ईराक के बारे में नहीं
लिखूंगा।
दज़ला-अफरात
स्मृति
बेरिंग
दर्रा पारकर धरती के उस ओर
स्मृति।
निरंतर
हारे हुए लोगों की
फिर-फिर
उठ खड़ी होती स्मृति।
मैं
ईराक पर नहीं लिखूंगा।
मैं
जब रोता हूँ
तुम
भी रोते हो
मैं
जब रोता हूँ
तुम
रोते हो
स्मृतियों
की भी स्मृति
अनंत
स्नायुतंत्र ।
(पहल- 2004; 'सुंदर लोग और अन्य कविताएँ' में संकलित)
(पहल- 2004; 'सुंदर लोग और अन्य कविताएँ' में संकलित)
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