Thursday, May 29, 2014

माया ऐेंजेलू - दो कविताएँ


Phenomenal Woman

Pretty women wonder where my secret lies.
I'm not cute or built to suit a fashion model's size
But when I start to tell them,
They think I'm telling lies.
I say,
It's in the reach of my arms
The span of my hips,
The stride of my step,
The curl of my lips.
I'm a woman
Phenomenally.
Phenomenal woman,
That's me.

I walk into a room
Just as cool as you please,
And to a man,
The fellows stand or
Fall down on their knees.
Then they swarm around me,
A hive of honey bees.
I say,
It's the fire in my eyes,
And the flash of my teeth,
The swing in my waist,
And the joy in my feet.
I'm a woman
Phenomenally.
Phenomenal woman,
That's me.

Men themselves have wondered
What they see in me.
They try so much
But they can't touch
My inner mystery.
When I try to show them
They say they still can't see.
I say,
It's in the arch of my back,
The sun of my smile,
The ride of my breasts,
The grace of my style.
I'm a woman

Phenomenally.
Phenomenal woman,
That's me.

Now you understand
Just why my head's not bowed.
I don't shout or jump about
Or have to talk real loud.
When you see me passing
It ought to make you proud.
I say,
It's in the click of my heels,
The bend of my hair,
the palm of my hand,
The need of my care,
'Cause I'm a woman
Phenomenally.
Phenomenal woman,
That's me.


कमाल की औरत

सुंदर स्त्रियाँ सोचती रहती हैं कि मेरे पास कौन सा मंत्र है

मैं खूबसूरत नहीं हूँ मेरी कद-काठी फैशन मॉडल के लायक नहीं

पर मेरी बातें सुनते ही

वे सोचती हैं कि मैं गप्पें उड़ा रही हूँ

सुनो

मंत्र मेरे कूल्हों के फैलाव

मेरे कदमों की तेजी

मेरे होंठों के तिरछेपन में है

मैं औरत हूँ

कमाल की

मैं कमाल की

औरत हूँ

जान लो।


मैं कमरे में आती हूँ

जितना चाहो उतना कूल

मैं मर्द के पास आती हूँ

बंदे थम से जाते हैं

या घुटनों पर गिरते लड़खड़ाते हैं

फिर मेरे चारों ओर मँडराते हैं

शहद ढूँढते भौंरे

सुनो

मंत्र मेरे आँखों की ज्वाला

मेरे दाँतों की चमक

मेरे कमर की लचक

मेरे पैरों के उल्लास में है

मैं औरत हूँ

कमाल की

मैं कमाल की

औरत हूँ

जान लो।


मर्द भी नहीं जान पाते

कि मुझमें क्या जादू है

कोशिश में रहते हैं कि जान लें

पर मेरे अंदर जो रहस्य है
उनसे परे है

जब उनके सामने खुल आती हूँ

वे कहते हैं वे नहीं देख पाते

सुनो

जादू मेरी पीठ के बाँकपन में है

मेरी मुस्कान में खिलती धूप में है

मेरे उरोजों के उत्थान में है

मेरी अदाओं के लालित्य में है

मैं औरत हूँ


कमाल की

मैं कमाल की

औरत हूँ

जान लो।


अब तुम समझ लो

कि मेरा माथा झुकता क्यों नहीं

मैं चीखती उछलती नहीं

या चिल्लाती नहीं

मैं तुम्हारे पास से गुजरूँ

तो तुम्हें गर्व होना चाहिए

सुनो

मंत्र मेरी एड़ियों की चटक में है

मेरे बालों के घुमाव में है

मेरी हथेलियों में है

मेरी ज़रूरत कि मुझे सँभालो में है

क्योंकि मैं औरत हूँ

कमाल की

मैं कमाल की

औरत हूँ

जान लो।

I Know Why The Caged Bird Sings

The free bird leaps
on the back of the wind
and floats downstream
till the current ends
and dips his wings
in the orange sun rays
and dares to claim the sky.

But a bird that stalks
down his narrow cage
can seldom see through
his bars of rage
his wings are clipped and
his feet are tied
so he opens his throat to sing.

The caged bird sings
with fearful trill
of the things unknown
but longed for still
and his tune is heard
on the distant hill for the caged bird
sings of freedom

The free bird thinks of another breeze
and the trade winds soft through the sighing trees
and the fat worms waiting on a dawn-bright lawn
and he names the sky his own.

But a caged bird stands on the grave of dreams
his shadow shouts on a nightmare scream
his wings are clipped and his feet are tied
so he opens his throat to sing

The caged bird sings
with a fearful trill
of things unknown
but longed for still
and his tune is heard
on the distant hill
for the caged bird
sings of freedom.

मैं जानती हूँ कि पिंजड़े में कैद चिड़िया क्यों गाती है

खुली चिड़िया हवा पर सवार

फुदकती है

बहती चलती है

जहाँ तक धार चले

अपने पंख बसंती धूप में

भिगोती है

और आस्मान पर अपना राज चलाती है


जो कैद है छोटे पिंजड़े में

वह चिड़िया कहाँ देख पाती है

अपने क्रोध की सँकरी सलाखों के पार

उसके पंख कुतर दिए गए हैं

उसके पैर बँधे हैं

वह बस खुल कर गा लेती है


पिंजड़े की चिड़िया घबराती

काँपते सुर में

अनजान दुनिया के गीत गाती

जहाँ वह जाना चाहती है

और उसकी धुन दूर पहाड़ियों तक पहुँचती है

चूँकि वह तो खुली हवा के गीत गाती है


खुली चिड़िया किसी और हवा

साँस लेते पेड़ों के बीच से गुजरती पुरवाई

के संग होती है

सुबह की रोशनी में चमकती घास पर मोटे कीड़े उसकी नज़र में होते हैं

और वह आस्माँ पर अपनी मिल्कियत का ऐलान करती है


पिंजड़े की चिड़िया सपनों की कब्र पर खड़ी होती है

उसकी छाया रात के दुःस्वप्नों में चीखती है

उसके पंख कुतर दिए गए हैं

उसके पैर बँधे हैं

वह बस खुल कर गा लेती है


पिंजड़े की चिड़िया घबराती

काँपते सुर में

उस अनजान दुनिया के गीत गाती

जहाँ वह जाना चाहती है

उसकी धुन दूर पहाड़ियों तक पहुँचती है

चूँकि वह तो खुली हवा के गीत गाती है।

2 comments:

अनिल जनविजय said...

बहुत अच्छे अनुवाद। कविताएँ भी अपने आप में बेहद अच्छी हैं, लेकिन अनुवादक ने अपना धर्म निभाया है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुन्दर कविताएँ!!!