क्या
यह धरती रहने लायक है?
एक
ऐसे शहर में रहते हुए जहाँ
कहीं भी सड़क पार करते हुए डर
लगता है कि अब गए कि अब गए,
एक ऐसे समय
में रहते हुए जहाँ हर ओर हिंसा
है और उसके खिलाफ कह पाने में
हज़ार बंदिशें हैं, सही
कदम अपनाए नहीं जाते, यह
सोचने की बात है कि क्या यह
धरती रहने लायक है?
हर
रोज सोचता हूँ कि कुछ लिखूँ,
पर दिमाग
सुन्न सा हुआ पड़ा है, अब
ऐसा समय आ रहा है कि हर क्षण
कहीं कुछ ग़लत हो रहा है,
किस किस को
लेकर लिखोगे लाल्टू!
दिमाग
में कुछ चलता रहता है कि अब इस
पर लिखना है, उसके
पहले ही कहीं कुछ और भयानक हो
गया होता है।
कहीं
बच्चे ज़हर खाकर मर रहे हैं,
कहीं कँवल
भारती को गिरफ्तार किया जा
रहा है, कहीं
मिश्र में लोगों का कत्लेआम
हो रहा है, कहीं
नरेंद्र डाभोलकर की हत्या हो
रही है, कहीं
किसी युवा लड़की का सामूहिक
बलात्कार हो रहा है, और
इसी बीच एक युवा पीढ़ी इन सब
बातों से बेखबर एक फासीवादी
लहर को समर्पित हो रही है।
क्या
यह धरती रहने लायक है?
समूची
धरती का भार हम में से कोई नहीं
ले सकता। पर हमारे पैर जितनी
धरती पर खड़े हैं, हमारे
आस-पास
जो धरती है, उस
पर कुछ कहने की, करने
की ज़ुर्रत हमें करनी ही होगी।
इसलिए
मुझे मेरे मित्र दलजीत अमी
का डे ऐंड नाइट न्यूज़ चैनल पर प्राइम डीबेट कार्यक्रम
मुझे बहुत अच्छा लगता है। जब
बाकी सारे चैनल अपनी रेटिंग
बढ़ाने के लिए ग़लत लफ्फाज़ी
और भ्रामक सूचनाओं का सहारा
लेते हैं, दलजीत
बड़े आराम से सही मुद्दों को
संतुलित ढंग से पेश करता है।
नरेंद्र डाभोलकर की हत्या के
बाद उसने दो ऐसे विमर्श करवाए,
जो सचमुच
अद्भुत थे। खासकर मेरे मित्र
आई आई एस ई आर, मोहाली
के प्रो. अरविंद
की टिप्पणी कि वैज्ञानिक सोच
के प्रति संस्थागत उदासीनता
हमारी बड़ी समस्या है,
बिल्कुल सही
और प्रभावी टिप्पणी थी। मैंने
अपनी संस्था के छात्रों और
अध्यापकों की ओर से हिंसा की
संस्कृति के खिलाफ बयान जारी
करवाने की पहल की तो मुझे
प्रशासन की तरफ से कहा गया कि
हम ऐसे बयान जारी नहीं करते।
एक ऐसी संस्था जो सामाजिक
बदलाव के प्रति प्रतिबद्धता
का दावा करती है, वह
सही दिशा में सामाजिक
बदलाव के लिए संघर्षरत समर्पित लोगों के खिलाफ हिंसा के खिलाफ बयान जारी करने
से कतराए, यह
इस मुल्क की दुखद स्थिति को
दर्शाता है। बहरहाल साथी
अध्यापक अम्मन मदान ने उस बयान को ऑन लाइन कर दिया और बात आगे
बढ़ी। ऐसे बयान कोई इंकलाब नहीं
लाते, न ही इनको जारी करने के पीछे ऐसी कोई मंशा होती है, ये
महज इतना कहते हैं कि हम इस
धरती को जीने लायक रखना चाहते
हैं। हम ज़िंदा हैं, अपनी प्यार
और संवेदना की अनुभूतियों के
साथ हम ज़िंदा हैं। हम हैं।
हम सब डाभोलकर हैं, मार
लो कितनो को मारोगे। और - संस्थाएँ डरती रहें, हम नहीं डरेंगे।
Comments
आप के विचार हमेशा की तरह हमें तर्कशील और सच्चाई को तर्क के आधार पर खोजने की प्रेरणा देते रहे है. आज आपकी पोस्ट पढ़ कर सच मे और ज्यादा शक्ति मिली है फिरोजपुर मे आज कॉलेज मे लग भाग एक हज़ार स्टूडेंट्स ने ढाई घंटे बिना लाइट के डॉ नरेन्द्र दम्भोलकर और उनके संघर्ष को ले कर विचार रखे और अपनी अपनी ढोंगी बाबाओं से जुड़े कुछ क़िस्से भी सुनाये और सबसे अन्धविश्वास को छोड़ कर तर्कशील बनने की अपील की. आज पंजाब में भी पुणे का संघर्ष और ताकत से बढ़ गया है. ये हार है उन लोगो की जो तर्क को दबाने की कोशिश कर रहे है.
आप जब समय मिले तो हमारे ब्लॉग को पढ़े http://dscphilosophicalsocietyfzr.blogspot.com
दलजीत की सभी चर्चा बेहतरीन होती है हम लोग टीवी और नेट पर देखते रहते है. ये चर्चा साँझा करने के लिए धन्यवाद.
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आप के विचार हमेशा की तरह हमें तर्कशील और सच्चाई को तर्क के आधार पर खोजने की प्रेरणा देते रहे है. आज आपकी पोस्ट पढ़ कर सच मे और ज्यादा शक्ति मिली है फिरोजपुर मे आज कॉलेज मे लग भाग एक हज़ार स्टूडेंट्स ने ढाई घंटे बिना लाइट के डॉ नरेन्द्र दम्भोलकर और उनके संघर्ष को ले कर विचार रखे और अपनी अपनी ढोंगी बाबाओं से जुड़े कुछ क़िस्से भी सुनाये और सबसे अन्धविश्वास को छोड़ कर तर्कशील बनने की अपील की. आज पंजाब में भी पुणे का संघर्ष और ताकत से बढ़ गया है. ये हार है उन लोगो की जो तर्क को दबाने की कोशिश कर रहे है.
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