यह जो गाँव पास से गुज़र रहा है
इसमें तुम्हारा जन्म हुआ
जब भी यहाँ से गुज़रता हूँ
स्मृति में घूम जाती हैं तुम्हारी आँखें
बचपन में जिन्हें तस्वीर में देखते ही हुआ सम्मोहित
तब से कई बार धरती परिक्रमा कर चुकी सूरज के चारों ओर
तुम्हारे शब्द कई बार बन चुके बहस के औजार
लंबे समय तक कुछ लोगों ने तुम्हारी पगड़ी पर सोचा
छायाचित्रों में तुम नहीं तुम्हारी पगड़ी का होना न होना देखा
और हमने जाना कि यह वक्त तुम्हें नहीं तुम्हारे नाम को याद रखता है
हमारे वक्त में दुनिया बदलती नहीं किसी के आने-जाने से
चिंताएँ, हँसी मजाक, दूरदर्शन, खेलकूद
सब चलते रहते हैं
ब्रह्मांड के नियमों अनुसार
यह छायाओं का वक्त है
चित्र हैं छायाओं के जिनसे आँखें निकाल दी हैं वक्त के जादूगरों ने
रंग दे बसंती गाते हुए हर कोई सीना ठोकता है
और फिर या तो जादूगरों की जंजीरों में गला बँधवा लेता है
या दृष्टिहीन छायाओं में खो जाता है
गीत गाता हुआ आदमी मूक हो जाता है
गाँव के पास से गुज़रते हुए
देखता हूँ गाँव अब शहर बन रहा है
आस पास जो झंडे लगे हैं
वह जिन हवाओं में लहरा रहे हैं
उनमें खरीद फरोख्त के मुहावरे हैं
बीच सड़क गुज़रते हुए
सीने से लगाता हूँ बचपन की स्मृति
तमाम मायावी झंडों के बीच आज़ाद लहरा रही है मेरी स्मृति
बूँद जो अब होंठों पर खारापन ला चुकी है
उँगलियों से उसे समेटता हूँ
फिर दिखने लगते हैं परचम
जिनमें तुम्हारी आँखें है
जो इक अलग तर्ज़ में बसंती रंग में रँग जाती हैं
जिस्म में फैले पचास वर्षों में मिले अनगिनत घाव।
गाँव पीछे छूट गया
साथ रह गए तुम कभी न छूटने वाले इन घावों में।
१४ सितंबर २००७ (उद्भावना - भगत सिंह स्मृति विशेषांक, २००७)
5 comments:
बहुत खूब!
तमाम मायावी झंडों के बीच आज़ाद लहरा रही है मेरी स्मृति
vaah kya baat hai.
very good poem
"हमारे वक्त में दुनिया बदलती नहीं किसी को आने जानें से/चिताएँ, हंसी मजाक, दूरदर्शन, खेल कूद/सब चलते रहते हैं "सही कहा आपनें, यह बात एक हद तक स्वीकार तो की जा सकती है कि पश्चिमी सभ्यता के आने से ग्रामीण सभ्यता उजड़ रही है ,पर जब हंसी मजाक, खेल कूद, इस समय भी हमारे साथ हैं जैसे कि पहले थे तो आख़िर वो संवाद और वो वातावरण आज हमारे बीच क्यों नहीं आ रहे हैं,जो कुछ समय पहले थे। गाँव की छाया पानें को उद्द्यत हर शहरी की आत्माएं हाही कह रही है, जिस प्रसंग को आपनें अपनी इस भावबोध कविता में उठाया है ।
one word "wow". It was beautiful. My fav. lines
" छायाचित्रों में तुम नहीं तुम्हारी पगड़ी का होना न होना देखा
और हमने जाना कि यह वक्त तुम्हें नहीं तुम्हारे नाम को याद रखता है"
"बूँद जो अब होंठों पर खारापन ला चुकी है
उँगलियों से उसे समेटता हूँ"
"और फिर या तो जादूगरों की जंजीरों में गला बँधवा लेता है
या दृष्टिहीन छायाओं में खो जाता है"
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