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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Thursday, January 31, 2019

हर कोई किसी से बदला ले रहा है


हर कोई किसी से बदला ले रहा है


सभी चेहरे एक से हो गए हैं

हर कोई किसी से बदला ले रहा है

कोई जागता है चिंघाड़ता

कोई सोता है विलापता

चीख पीड़ा की है

या कोई धावा कर रहा है

हर कोई कहीं किसी दीवार से माथा टकरा रहा है

जो उसने खुद ही खड़ी की हुई है



मेरा बदन पिस्सुओं से भर गया है

रेंगते जीवाणु हैं रोओं के आर-पार

अनगिनत चेहरों में अपना चेहरा ढूँढता हूँ

कोई समंदर है मार-मार काट-काट कहती लहरें उछालता



सभी चेहरे एक से हो गए हैं

हर कोई किसी से बदला ले रहा है

सड़कों पर नंग-धड़ंग दौड़ रहे हैं शैतान के अनुचर

जल रही हैं बस्तियाँ,

हँस रहा है शैतान।      - (अदहन 2018)

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1 Comments:

Anonymous अनिल पाण्डेय said...

सच है| अपनी तरह की एक विशेष कविता| हर कोई हर किसी को हर जगह बदला लेने के लिए खड़ा है| आदमी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने में व्यस्त है और घेर कर मारा जा रहा है जबकि शैतान हँस रहे हैं और लगातार हँसते जा रहे हैं|

5:47 PM, February 17, 2019  

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