tag:blogger.com,1999:blog-18449440.post6862769466231925236..comments2024-02-21T21:44:01.379+05:30Comments on आइए हाथ उठाएँ हम भी: युद्ध सरदारों ध्यान से सुनोलाल्टूhttp://www.blogger.com/profile/04044830641998471974noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-18449440.post-10073557510241090282010-08-26T22:47:32.324+05:302010-08-26T22:47:32.324+05:30जबसे नयी कविता की थोड़ी-बहुत समझ आने लगी थी, आपको ह...जबसे नयी कविता की थोड़ी-बहुत समझ आने लगी थी, आपको हंस आदि पत्रिकाओं में पढ़कर आपका जबरदस्त प्रशंसक हो गया। शिल्पायन के ललित जी से जरा पूछियेगा कि आपके "लोग ही चुनेंगे रंग" की एक प्रति के लिये उनको कितना हलकान किया था मैंने। मेरी टिप्पणी से मेरे प्रिय कवि को चोट पहुँची उसके लिये क्षमा चाहूँगा...मेरी उस टिप्पणी को पूरे संपूर्ण रूप में समझ लेते तो शायद आपको तकलीफ़ नहीं पहुँचती।<br /><br />मेरे लिये तो यही बहुत बड़ी बात है कि मेरे प्रिय कवि ने मेरा नाम उच्चरित किया....<br /><br />एक बार फिर से क्षमा। यक़ीन मानिये कुछ "राक्षसप्रवृति" वाले लोगों में भी संवेदनायें होती हैं और ये इस क्षमा की गुहार उसी संवेदना से उपजी है...गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.com