tag:blogger.com,1999:blog-18449440.post1937365507781180598..comments2024-02-21T21:44:01.379+05:30Comments on आइए हाथ उठाएँ हम भी: जादुई यथार्थ जादुई भी था और यथार्थ भीलाल्टूhttp://www.blogger.com/profile/04044830641998471974noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-18449440.post-53138689386802755962014-04-20T11:46:44.066+05:302014-04-20T11:46:44.066+05:30"...मेरी आर्थिक स्थिति कभी भी अच्छी नहीं रही,...<b>"...मेरी आर्थिक स्थिति कभी भी अच्छी नहीं रही, पर मुझे अच्छी किताब पढ़ने पर जुनून सा हो जाता था (अब कम होता है)</b><br /><br />:)<br />एक समय था जब मैं भी अपने आधे वेतन जितनी महंगी किताबें खरीद लाया करता था. पर अब इंटरनेट है, निःशुल्क ईबुक्स हैं, शहर में तीन-2 बढ़िया लाइब्रेरी भी हैं, और रचनाकार बंधु अपनी लोकार्पित किताबें थमाते जाते हैं तो इधर भी खरीदने का जुनून प्रायः खत्म सा हो गया है :)रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.com