tag:blogger.com,1999:blog-18449440.post113725297343023949..comments2024-02-21T21:44:01.379+05:30Comments on आइए हाथ उठाएँ हम भी: पंजाब की लोक-संस्कृति का अद्भुत संसारलाल्टूhttp://www.blogger.com/profile/04044830641998471974noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-18449440.post-7139140216491008452012-01-14T12:23:48.687+05:302012-01-14T12:23:48.687+05:30पंजाबी संस्कृति के मूल में पहुँचे हैं आप। अच्छा लग...पंजाबी संस्कृति के मूल में पहुँचे हैं आप। अच्छा लगा, वरना पंजाबी गीत-संगीत का अर्थ भौंडे रीमिक्स और अश्लील नृत्यों तक ही सिमटकर रह गया है। पंजाबी संस्कृति मतलब कनाडा वाली पंजाबी कल्चर हो गया है। बहुत महत्वपूर्ण लेख है आपका। बहुत आश्वस्त हुआ मन। वास्तव में लोहड़ी की बधाई आपने दी है।परमेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/07894578838946949457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18449440.post-44689865831634308832012-01-14T11:52:22.206+05:302012-01-14T11:52:22.206+05:30जो ताकतें लोक उत्सवों को एक खास ढंग की मस्ती में ...जो ताकतें लोक उत्सवों को एक खास ढंग की मस्ती में तब्दील कर रही हैं, वही प्रतिरोध की संस्कृति की स्मृति का लोप करने का काम कर रही हैं। पंजाबी कल्चर के नाम पर इस वक्त जो मोटे तौर पर पोपुलर है, बदकिस्मती से उसमें वल्गरिटी का बौलबाला काफी है। लोहड़ी जैसे पारंपरिक उत्सव भी इसका शिकार हुए ही हैं। ऐसे माहौल में भी पंजाब की जनता में गुरुशरण सिंह जैसे संस्कृतिकर्मी को नायक का दर्जा हासिल होना और यह बाकायदा पंजाबी अखबार में भी दर्ज होना मामूली बात नहीं है। आपने बात को गुरुशरण सिंह से जोड़कर संस्कृति और परंपरा के सही अर्थ सामने रखे हैं।Ek ziddi dhunhttps://www.blogger.com/profile/05414056006358482570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18449440.post-1137341742397092872006-01-15T21:45:00.000+05:302006-01-15T21:45:00.000+05:30दुल्ला भट्टी वाला के गीत के लिए शुक्रिया. पिछले दि...दुल्ला भट्टी वाला के गीत के लिए शुक्रिया. पिछले दिनों दिल्ली में लोहड़ी का नाम सुन कर मैंने भी यह गीत याद करने की कोशिश की थी पर पहली दो लाईने ही याद कर पाया था, हालाँकि बिल्कुल पूरा गीत जैसा आप ने दिया है, वैसा तो मुझे कभी भी नहीं आता था.<BR/>गुरुशरण सिंह जी आदि के बारे में पढ़ कर कुछ सहारा मिला. दिल्ली में हिंदी के बारे में अगर लोकसक्ता जैसे समाचारपत्र देखें तो हालत बहुत निराशाजनक लगती है पर शायद उत्तरप्रदेश या मध्यप्रदेश के गाँवों में भी ऐसे उदाहरण होंगे जिनसे कुछ आशा बनी रहे!Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18449440.post-1137339498998039502006-01-15T21:08:00.000+05:302006-01-15T21:08:00.000+05:30रूमानियत मेरे हाजमे से कुछ ज्यादा रही पर फिर भी क...रूमानियत मेरे हाजमे से कुछ ज्यादा रही पर फिर भी कलम (कीबोर्ड) की सहजता व सटीकता वही है।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-18449440.post-1137260851153088602006-01-14T23:17:00.000+05:302006-01-14T23:17:00.000+05:30आपकी अनुदित कहानियों के इंटरनेट पर आने का इंतजार र...आपकी अनुदित कहानियों के इंटरनेट पर आने का इंतजार रहेगा। लोहड़ी के वर्णन और गाँवो में नाटकाकर के सम्मान से यही लगा कि महानगरों और चैनलों पर जो तथाकथित अपसंस्कृति के हमलों का जिक्र है, जो पाश्चात्य सब्यता के अँधानुकरण का स्यापा है वह वहीं तक सीमित है, गाँव व कस्बों में अपना भारत अभी भी जिंदा है।Atul Arorahttps://www.blogger.com/profile/00089994381073710523noreply@blogger.com