Monday, July 18, 2016

खबर

16 जुलाई – हैदराबाद विश्वविद्यालय में काश्मीर के मौजूदा हालात पर सभा। बाहर से किसी के भी आने पर रोक थी। सुरक्षा कर्मियों ने सभा रोकने की कोशिश की, पर युवा छात्रों के बुलंद इरादों और राजनीति विज्ञान के अध्यापक डॉ विजय के हस्तक्षेप से तय कार्यक्रम पूरा हुआ। करीब सौ लोग मौजूद थे।
बाद में ए बी वी पी के लड़कों ने भारत माता की जै वाला जुलूस निकाला और पंजाब से आए शोधछात्र अमोल सिंह को काश्मीरी मुसलमान समझ कर बुरी तरह पीटा। अमोल को अस्पताल जाना पड़ा।

17 जुलाई –आंध्र प्रदेश के करमचेडु गाँव में 31 साल पहले हुए दलितों के कत्लेआम की बरसी और रोहित वेमुला के निधन के छ: महीने पूरे होने पर हैदराबाद विश्वविद्यालय में सभा हुई। बाहर से लोगों के आने पर ज्यादा सख्ती से रोक थी। पुलिस की गाड़ी चक्कर लगा रही थी। दोनों गेट पर कई पुलिसकर्मी और एक पूरा ट्रक मौजूद था। सुरक्षा कर्मियों ने सभा रोकने की कोशिश की, झड़प भी हुई, पर कार्यक्रम पूरा हुआ। दो अध्यापकों ने भी भाषण दिए, इनमें डॉ विजय भी थे। बाद में मोमबत्तियाँ लिए जुलूस उस होस्टल तक गया, जहाँ रोहित का निधन हुआ था। नारे लगाते हुए करीब ढाई सौ लोग शामिल थे। फिर 9 बजे से कार्ल सेगन की फिल्म 'कॉसमॉस' दिखाई जानी थी, पर प्रशासन ने बिजली गुल कर दी।

18 जुलाई –तीस साल पहले देखी वूडी ऐलन की पुरानी फिल्म 'ज़ेलिग' डाउनलोड कर रहा था, जो एक ऐसे अनोखे चरित्र पर काल्पनिक वृत्तचित्र (फिक्शनल डॉक्यूमेंटरी) है, जो परिस्थिति के अनुसार रंग बदलकर खुद को नए शख्सियत में ढाल लेता था। पता नहीं कैसे यह फिल्म मेरे फीचर फिल्मों के फोल्डर में न जाकर डॉक्यूमेंटरी वाले फोल्डर में डाउनलोड हो गई। हमारा समय? कि यह फिल्म कल्पना नहीं, सच है?

Saturday, July 16, 2016

मेरी ये आम आँखें


आत्मकथा


1
जो कुछ कहूँगा सच कहूँगा
सच के सिवा जो कहूँगा
वह भी सच ही होगा
आज सच कहने में डर भी क्या
जो मैंने कहा वह किसने पढ़ा

2
सच कि मैं चाहता हूँ काश्मीर जाऊँ
मेरी मित्र वहाँ सिंहासननुमा कुर्सी पर बैठी है
उसके हाथ में बेटन है
वह कोशिश में है कि
मैं वहाँ आ सकूँ
दस साल पुराने केमिस्ट्री के पाठ
फिर से पढ़ा सकूँ
हो सकता है कि इस बार इतना कुछ सीख ले
कि सी आर पी की नौकरी छोड़ दे
और हवा पानी फूल पत्तों से रिश्ता जोड़ ले
और जब वह एक भरपूर औरत है
मेरी दोस्त बने एक दोस्त की तरह मुझे चूम ले
सच यह कि मैं काश्मीर नहीं जाऊँगा
दूरदर्शन के परदे पर उसे देखूँगा
उसकी खूबसूरत आँखें उसकी गुलाम आँखें
आज़ादी के डर में हो गईं नीलाम आँखें
दूरदर्शन तक मेरा काश्मीर होगा
दूरदर्शन भर होंगी उसकी आँखें
औरों की गुलामी में शामिल होगी
मेरी आवाज़
सच यह कि सच के सिवा
कुछ और ही देखती रहेंगी
मेरी ये आम आँखें
(साक्षात्कार 1999)