Tuesday, March 31, 2015

पॉज़ीट्रॉन वह पाजी हरजाई


और "भैया ज़िंदाबाद" से विज्ञान से जुड़ी यह तीसरी कविता:-





श्रीमान इलेक्ट्रॉन



मैं हूँ श्रीमान इलेक्ट्रॉन


बिन मेरे तुम हो बेजान



हर परमाणु में जुड़वें मेरे


फैले हैं नाभि को घेरे



घूम रहे क्या चारों ओर


ऐसा कभी मचा था शोर



'गर पूछो कि मैं हूँ किधर


मैं बतलाऊँ इधर-उधर



मत पूछो कि मैं हूँ किधर


पूछो कि हो सकता कितना किधर



एक है मेरा दुश्मन भाई


पॉज़ीट्रॉन वह पाजी हरजाई



अगर मिल जाऊँ कभी मैं उससे


हो जाऊँ खत्तम फिस्स से



प्रकाश-ताप बन जाऊँ फिर


खूब खपाए मैंने लोगों के सिर।


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